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सूत्रकृताङ्गे भाषानुवादसहिते एकादशमध्ययने गाथा २
श्रीमार्गाध्ययनम् का उपदेश देनेवाले तीर्थङ्कर ने तीन लोक में कौन सा मोक्ष देने में समर्थ मार्ग कहा है ? वह भगवान् मतिमान् थे । जो, लोक, तथा अलोक में रहनेवाले सूक्ष्म, व्यवहित, दूर, भूत, भविष्य और वर्तमान सभी पदार्थों को प्रकाश करती उसे मति कहते है, वह केवलज्ञान है, वह भगवान् में विद्यमान है, इसलिए भगवान् मतिमान् हैं । उस भगवान् के द्वारा बताया हुआ जो मोक्षमार्ग है, वह प्रशस्त भावमार्ग है तथा वह वस्तु का यथार्थ स्वरूप बताने के कारण मोक्ष प्राप्ति के लिए सरल मार्ग । तथा वस्तु को सामान्य, विशेषरूप तथा नित्य और अनित्यरूप कहकर स्याद्वाद का आश्रय लेने के कारण वह वक्र यानी टेढ़ा नहीं है, वह मार्ग सम्यग्दर्शन, ज्ञान, तप और चारित्ररूप है, उसे पाकर संसारी जीव मोक्ष की समस्त सामग्री को पाकर दुस्तर संसार सागर को पार करता है। संसार सागर को पार करना अत्यंत कठिन है किन्तु पार करने की सामग्री पाना उससे भी बहुत कठिन है । कहा भी है ( माणुस्स) मनुष्यजन्म, आर्यक्षेत्र, उत्तमजाति, कुल, रूप, आरोग्य, आयु, बुद्धि, धर्म सुनने का योग, उस पर श्रद्धा, निर्मलचारित्र ये सब वस्तुएँ प्राप्त होनी दुर्लभ है ||१||
स एव प्रच्छकः पुनरप्याह
जिसने पहले पूछा है, वही फिर पूछता है - तं मग्गं णुत्तरं सुद्धं, सव्वदुक्खविमोक्खणं । जाणासि णं जहा भिक्खू !, तं णो बूहि महामुणी
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॥२॥
छाया - तं मार्गमनुत्तरं शुद्धं सर्वदुःखविमोक्षणम् । जानासि वै यथा भिक्षो । तं नो ब्रूहि महामुने ॥
अन्वयार्थ - (भिक्खू महामुणी) हे साधो ! हे महामुने ! (सव्वदुक्खविमोक्खणं सुद्धं णुत्तरं तं मग्गं जहा जाणासि ) सब दुःखों को छुड़ानेवाले, सब से श्रेष्ठ उस शुद्ध मार्ग को आप जैसे जानते हैं । णो बूहि ) सो हमें बताईए ।
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भावार्थ - जम्बूस्वामी श्री सुधर्मास्वामी से पूछते हैं कि - हे महामुने ! आप सब दुःखों को छुड़ानेवाले तथा सब से श्रेष्ठ तीर्थकर के कहे हुए मार्ग को जानते हैं, इसलिए हमें वह सुनाइए ।
टीका - योऽसौ मार्गः सत्त्वहिताय सर्वज्ञेनोपदिष्टोऽशेषैकान्तकौटिल्यवक्र (ता) रहितस्तं मार्गं, नास्योत्तर:प्रधानोऽस्तीत्यनुत्तरस्तं शुद्धः - अवदातो निर्दोषः पूर्वापरव्याहतिदोषापगमात्सावद्यानुष्ठानोपदेशाभावाद्वा तमिति, तथा सर्वाणि - अशेषाणि बहुभिर्भवैरुपचितानि दुःखकारणत्वाद्दुःखानि - कर्माणि तेभ्यो "विमोक्षणं" - विमोचकं तमेवंभूतं मार्गमनुत्तरं निर्दोषं सर्वदुःखक्षयकारणं हे भिक्षो ! यथा त्वं जानीषे "ण" मिति वाक्यालङ्कारे तथा तं मार्गं सर्वज्ञप्रणीतं "नः " अस्माकं हे महामुने ! " ब्रूहि" कथयेति ॥२॥
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टीकार्थ जीवों के कल्याण के लिए जो मार्ग सर्वज्ञ प्रभु ने कहा है, वह सम्पूर्ण तथा निश्चयरूप से वक्रता रहित है तथा उस मार्ग से श्रेष्ठ दूसरा मार्ग नहीं हैं, इसलिए वह अनुत्तर है एवं वह शुद्ध यानी निर्दोष है क्योंकि वह पहले और पीछे परस्पर विरुद्ध बात नहीं बतलाता है तथा वह सावद्य अनुष्ठान का उपदेश नही करता है। एवं बहुत जन्मों के सञ्चित जो दुःख के कारण दुःखरूप कर्म हैं, उनको छोड़ानेवाला वह मार्ग है। ऐसे प्रधानमार्ग को हे भिक्षो ! हे महामुने ! आप जिस प्रकार जानते है, उस तरह उस निर्दोष तथा सब दुःखों को क्षय करनेवाले मार्ग को हमें बताईए ||२||
यद्यप्यस्माकमसाधारणगुणोपलब्धेर्युष्मत्प्रत्ययेनैव प्रवृत्तिः स्यात् तथाप्यन्येषां मार्गः किंभूतो मयाऽऽख्येय
इत्यभिप्रायवानाह .
यद्यपि हम तो आप के असाधारण गुणों को जानने के कारण आपके विश्वास से ही मान लेते हैं तथापि
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