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________________ सूत्रकृताङ्गेभाषानुवादसहिते नवममध्ययने गाथा १-२-३ कयरे धम्मे अक्खाए, माहणेण मतीमता ? । अंजु धम्मं जहातच्चं जिणाणं तं सुणेह मे 118 11 छाया - कतरो धर्म आख्यातः, माहनेन मतिमता । ऋनुं धर्म यथातथ्यं, जिनानां तं शृणुत मे ॥ अन्वयार्थ - (मतीमता) केवलज्ञानी (माहणेण) जीवों को न मारने का उपदेश देनेवाले भगवान् महावीर स्वामी ने (कयरे धम्मे अक्खाए) कौन सा धर्म बताया है ? । (जिणाणं) जिनवरों के (तं अंजु धम्मं ) उस सरल धर्म को (जहातच्च) ठीक ठीक (मे सुणेह) मेरे से सुनो। भावार्थ - केवलज्ञानी तथा जीवों को न मारने का उपदेश करनेवाले भगवान् महावीर स्वामी ने कौन सा धर्म कहा है ? यह जम्बूस्वामी आदि का प्रश्न सुनकर श्रीसुधर्मा स्वामी कहते हैं कि जिनवरों के सरल उस धर्म को मेरे से सुनो। टीका जम्बूस्वामी सुधर्मस्वामिनमुद्दिश्येदमाह - तद्यथा - 'कतरः किम्भूतो दुर्गतिगमनधरणलक्षणो धर्मः 'आख्यातः' प्रतिपादितो 'माहणेणं' ति मा जन्तून् व्यापादयेत्येवं विनेयेषु वाक्प्रवृत्तिर्यस्यासौ 'माहनो' भगवान् वीरवर्धमानस्वामी तेन ?, तमेव विशिनष्टि - मनुते - अवगच्छति जगत्त्रयं कालत्रयोपेतं यया सा केवलज्ञानाख्या मतिः सा अस्यास्तीस्ति मतिमान् तेन - उत्पन्नकेवलज्ञानेन भगवता, इति पृष्टे सुधर्मस्वाम्याह - रागद्वेषजितो जिनास्तेषां सम्बन्धिनं धर्मं 'अंजुम्' इति 'ऋजुं' मायाप्रपञ्चरहितत्वादवक्रं तथा- 'जहातच्चं मे' इति यथावस्थितं मम कथयतः शृणुत यूयं, न तु यथाऽन्यैस्तीर्थिकैर्दम्भप्रधानो धर्मोऽभिहितस्तथा भगवताऽपीति, पाठान्तरं वा 'जणगा तं सुणेह मे' जायन्त इति जना - लोकास्त एव जनकास्तेषामामन्त्रणं हे जनकाः ! तं धर्मं शृणुत यूयमिति ॥ १ ॥ भावधर्ममध्ययनं टीकार्थ - जम्बूस्वामी, सुधर्मास्वामी से कहते हैं कि प्राणियों को मत मारो इस प्रकार शिष्यों को उपदेश देनेवाले भगवान् महावीर स्वामी ने प्राणियों को दुर्गति में जाने से बचानेवाला कौन सा धर्म कहा है ?। वह महावीरस्वामी कैसे हैं ? सो विशेषण के द्वारा बतलाते हैं- जिसके द्वारा भूत, भविष्यत् और वर्तमान काल सहित इन तीनों लोकों को जानता है, उसको केवलज्ञान रूपी मति कहते हैं, वह केवलज्ञान जिनको उत्पन्न हो गया था, ऐसे भगवान् महावीर स्वामी थे । यह प्रश्न करने पर श्रीसुधर्मा स्वामी कहते हैं कि जिन ने रागद्वेष को जित लिया है, उन्हें जिन कहते हैं । उनका धर्म माया के प्रपञ्च से रहित होने के कारण सीधा है, वह धर्म मैं आप से ठीक ठीक कहता हूं, आप उसे सुनें । जैसे दूसरे धर्मवाले तीर्थप्ररूपकों ने मायाप्रधान धर्म कहा है, वैसा भगवान् ने नहीं कहा है। यहां "जाणगा तं सुणेह मे" यह पाठान्तर पाया जाता है । इसका अर्थ यह है- जो जन्मधारण करते हैं, उन्हें जन कहते हैं और जनों को ही जनक कहते हैं, उनका सम्बोधन करते हुए कहते हैं कि हे जीवों! उस धर्म को आप लोग सुनें ॥१॥ अन्वयव्यतिरेकाभ्यामुक्तोऽर्थः सूक्तो भवतीत्यतो यथोद्दिष्टधर्मप्रतिपक्षभूतोऽधर्मस्तदाश्रितांस्तावद्दर्शयितुमाह अन्वय और व्यतिरेक के द्वारा कहा हुआ अर्थ ठीक कहा हुआ माना जाता है, इसलिए पहले जो धर्म कहा गया है, उसका प्रतिपक्ष अधर्म है, उस अधर्म का आश्रय करनेवाले प्राणियों को दिखाने के लिए शास्त्रकार कहते हैं - ४१८ माहणा खत्तिया वेस्सा, चंडाला अदु बोक्कसा । सुद्दा, जे य आरंभणिस्सिया एसिया वेसिया परिग्गहनिविद्वाणं, वेरं तेसिं पवई । आरंभसंभिया कामा, न ते दुक्खविमोयगा ॥३॥ छाया - ब्राह्मणाः क्षत्रियाः वैश्या, चाण्डाला अथ बोक्कसाः । एषिका, वैशिकाः शूदाः, ये चारम्भनिश्रिताः ॥ ॥२॥
SR No.032700
Book TitleSutrakritanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages364
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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