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________________ सूत्रकृताङ्गेभाषानुवादसहिते अष्टममध्ययने गाथा २६ श्रीवीर्याधिकारः टीकार्थ - चित्त को बुरे विषयों से रोकना अर्थात् धर्मध्यान आदि को ध्यान कहते हैं। उसमें मन, वचन, और काय के विशिष्ट व्यापार को ध्यान योग कहते हैं । उस ध्यान योग को अच्छी रीति से ग्रहण करके अकुशल योग में (बुरे कार्य में) जाते हुए शरीर को रोको । तथा सब प्रकार से अपने हाथ पैर आदि को भी दूसरे को पीड़ा देनेवाले व्यापारों में न जाने दो । एवं परीषह और उपसर्ग को सबसे उत्तम समझकर समस्त कर्मों का क्षय पर्य्यन्त संयम का अनुष्ठान करो, यह मैं कहता हूं इति शब्द समाप्ति अर्थ में है, ब्रवीमि पूर्ववत् है ॥२६।। यह अष्टम श्रीवीर्यनामक अध्ययन समाप्त हुआ। ४१५
SR No.032700
Book TitleSutrakritanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages364
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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