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________________ सूत्रकृताङ्गेभाषानुवादसहिते अष्टममध्ययने प्रस्तावना श्रीवीर्याधिकारः कवच आदि की शक्ति, तथा हथियार में चक्र आदि की जो शक्ति है, वह क्रमशः आवरणवीर्य और प्रहरणवीर्य रूप अचित्तद्रव्य का वीर्य्य है । अब नियुक्तिकार गाथा के उत्तरार्ध के द्वारा क्षेत्र और काल का वीर्य्य बतलाते हैजिस क्षेत्र की जो शक्ति है, वह उसका क्षेत्रवीर्य्य है । जैसे देवकुरू आदि क्षेत्र में सभी पदार्थ उस क्षेत्र के प्रभाव से उत्तम वीर्य्यवाले होते हैं, अतः वह क्षेत्रवीर्य्य है । अथवा किला वगैरह स्थान के आश्रय से किसी पुरुष का उत्साह बढ़ता है, इसलिए वह क्षेत्रवीर्य है । अथवा जिस क्षेत्र में वीर्य्य की व्याख्या की जाती है, वह क्षेत्रवीर्य है। इसी तरह एकान्त सुषम नामवाला पहला आरा आदि कालवीर्य है । तथा कालवीर्य्य के विषय में वैद्यक शास्त्र में कहा है ___ "वर्षासु" अर्थात् वर्षाकाल में नमक, शरद् में जल, हेमन्त में गाय का दूध, शिशिर में आँवले का रस, वसन्त में घृत और ग्रीष्म में गुड़ अमृत के समान है ॥१॥ (ग्रीष्मे) अर्थात् हरित की (हरड़) ग्रीष्म ऋतु में बराबर गुड़ के साथ, तथा मेघ से गाढ़ हुआ आकाशवाली वर्षाऋतु में सैन्धव (सेंधा नमक) के साथ, एवं शरद् ऋतु में शक्कर के साथ तथा हेमन्त ऋतु में सोंठ के साथ, एवं शिशिर ऋतु में पिप्पल के साथ तथा वसन्त ऋतु में मधु के साथ खाने से जैसे पुरुषों के समस्त रोग दूर हो जाते हैं, इसी प्रकार तुम्हारे शत्रु नष्ट हो जायँ ॥२॥९२-९३॥ अब भाववीर्य्य बताने के लिए नियुक्तिकार कहते हैं वीर्य्य शक्तिवाले जीव की वीर्य सम्बन्धी अनेक लब्धियाँ हैं । वे गाथा के उत्तरार्ध द्वारा बताई जाती हैं। छाती का वीर्य्य, शरीरबल है तथा इन्द्रियों का बल, आध्यात्मिक बल है । वह बहुविध होता है, यही शास्त्रकार दिखलाते हैं-मन, अन्दर के व्यापार से मन के योग्य पुद्गलों को एकट्ठा करके मन के रूप में, भाषा के योग्य पुद्गलों को भाषारूप में एवं काय के योग्य पुद्गलों को काय के रूप में तथा श्वास और उच्छ्वास के योग्य पुद्गलों को श्वास और उच्छ्वास के रूप में परिणत करता है । मन, वचन, और काय के योग्य पुद्गल, जो मन, वचन और कायरूप में परिणत हुए हैं, उनके वीर्य्य (शक्ति) के दो भेद हैं-संभव और सम्भाव्य । संभव का उदाहरण यह है, तीर्थङ्कर तथा अनुत्तर विमान के देवों का मन बहुत निर्मल शक्तिवाला होता है । अनुत्तर विमान के देव, अवधि ज्ञानवाले होते हैं, वे मन के द्वारा जो प्रश्न करते हैं, उसका उत्तर तीर्थङ्कर द्रव्य मन से ही देते हैं, क्योंकि अनुत्तर विमान के देव सभी कार्य मन से ही करते हैं । संभाव्य का उदाहरण यह है, जो जीव, बुद्धिमान के द्वारा कही हुई बात को इस समय नहीं समझ सकता है, परन्तु भविष्य में अभ्यास के द्वारा समझ लेगा उसका वीर्य सम्भाव्यवीर्य है। वाग्वीर्य के दो भेद होते हैं, संभव और सम्भाव्य । इनमें संभव में तीर्थङ्करों की वाणी है, वह एक योजन तक फैलनेवाली है और अपनी अपनी भाषा में सब जीव उसे समझ लेते हैं । तथा कोई पुण्यशाली पुरुषों की वाणी दूध और मधु के समान मिठी होती है, यह वचन का सौभाग्य समझना चाहिए। तथा हंस और कोकिल का स्वर मधुर होता है । संभाव्य में श्यामा स्त्री का गान मधुर है, जैसा कि कहा है (सामा) अर्थात् दो स्त्रियों में एक का नाम श्यामा है वह मधुर स्वर से गाती है और काली नाम की स्त्री कठोर और अप्रिय गाती है । एवं हम आशा करते हैं कि "यह श्रावक का पुत्र पढ़े बिना ही उचित बोलने योग्य अक्षरों को बोलेगा" तथा हम आशा करते हैं कि मैना और तोता को यदि मनुष्य के संसर्ग में रखा जाय तो वे मनुष्य की भाषा सीख लेंगे (ये संभाव्य, वाग्वीर्य के उदाहरण हैं) इसी तरह छाती का बल, जो जिसका है, वह भी संभव और सम्भाव्य भेद से दो प्रकार का है । संभव में चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव का जो बाहुबल है, वह संभव कायबल समझना चाहिए । क्योंकि त्रिपृष्ट वासुदेव ने बाएँ हाथ की हथेली से करोंडो मन की कोटि शिला उठा ली थी। अथवा सोलह हजार राजाओं की सेना जिस जंजीर को खींचती है, उसको वे अकेले अपने सामने खींच लेते हैं इत्यादि । तथा तीर्थङ्कर अतुलबलवाले होते हैं (ये सब संभवकायबल के उदाहरण है) संभाव्य में, तीर्थङ्कर, लोक को अलोक में गेंद की तरह फेंक सकते हैं तथा वे मेरु पर्वत को डंडे की तरह और पृथिवी को उसके ऊपर छत्ते की तरह रख सकते हैं। तथा कोई इन्द्र, जम्बूद्वीप को बाएँ हाथ से छत्र की तरह तथा मन्दर पर्वत को डंडे की तरह सहज ह
SR No.032700
Book TitleSutrakritanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages364
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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