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________________ श्रीसूत्रकृताङ्गसूत्र - प्रथम श्रुतस्कंध की प्रस्तावना योग्य मार्गदर्शन देकर हमे अनुगृहीत किया हैं । __ वैसे तो आगम के भाषानुवाद नहीं होने चाहिए, कारण कि आगम- रहस्य गुरुगम्य है । किन्तु वर्तमानकालीन परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए कि जो दूर प्रदेशों में विचरण कर रहे है, जिनको अध्ययन का योग नहीं मिल रहा है, वे भी इस ग्रन्थ के अध्ययन से वंचित न रहे, तथा यह अनुवाद वर्षों पूर्व छपा था इस बार पुनरावृत्ति की आवश्यकता थी जिससे सुरक्षित रह सके, इसलिए इस ग्रन्थ को प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया । फिर भी पाठकों से अनुरोध है कि गुरु-आज्ञा पूर्वक ही इसका अध्ययन करें। इस ग्रन्थ के प्रथम श्रुतस्कन्ध का अनुवाद ही उपलब्ध था । भाषांतरकार ने द्वितीय श्रुतस्कन्ध के टीका का अनुवाद नहीं किया । अतः केवल प्रथम श्रुतस्कन्ध का अनुवाद ही प्रकट हो रहा है । जिनाज्ञा विरुद्ध कुछ भी लिखा हो तो मिच्छा मि दुक्कडं । जयानन्द भीलडीयाजी तीर्थ, चैत्री पूर्णिमा २०७०
SR No.032699
Book TitleSutrakritanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size15 MB
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