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श्रीसत्रकृताङ्गसत्र - प्रथम श्रतस्कंध की प्रस्तावना महाराजए महावीर विद्यालय प्रकाशित सूयगडंग अने आगम प्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी महाराजए नोंधावेला पाठ भेदवाळी प्रतनो उपयोग कर्यो छे. • टीकाकार शीलांकाचार्य (शीलाचार्य)ना समय विषे आगमप्रज्ञ मुनिश्री जंबुविजयजी म.सा. आचारांगसूत्रनी प्रस्तावना पृ. ४९मां जणावे छे के- “आनी रचना शक संवत ७८४ (बीजा उल्लेख प्रमाणे ७९८ शक संवत्) मां
(बीजा उल्लेख प्रमाणे ९३२) मां थई छे. एम तेमना ज उल्लेख उपरथी जणाय छे. बीजी केटलीक प्रत्तिओमां मळता उल्लेख प्रमाणे प्रथम श्रुतस्कंधनी वृत्तिनी रचना गुप्त संवत ७७२ अने बीजा श्रुत स्कंधनी वृत्तिनी रचना शक संवत ७९८ मां थयेली छे. आ गुप्त संवत जो शक संवत ज होय तो प्र० श्रु० नी वृत्तिनी रचना शक संवत ७७२ (विक्रम संवत ९०६) मां थयेली छे. आनुं १२००० श्लोक जेटलुं प्रमाण गणाय छे." . श्री शीलांकाचार्य, जीवन-कवन कई मळतुं नथी. प्रभावक चरित्र मुजब तेओए नव अंगग्रंथो उपर टीका रची हती. जो के अत्यारे अचारांग अने सूयगडांग उपर ज मळे छे.
विद्वद्वर्य मुनिराजश्री जयानंदविजयजी महाराज द्वारा संपादित थई सटीक-सानुवाद सुत्रकृतांगसूत्र प्रगट थाय छे तेथी हिन्दी भाषी लोकोने आ ग्रंथ समजवामां विशेष अनुकुळता रहेशे.
__ अधिकारी विद्वानो आ ग्रंथना परिशीलन द्वारा स्व-पर दर्शननी जाणकारी मेळवे, वैराग्यभाव केळवे अने स्वपरनी सिद्धिने नजीक लावे एज अभिलाषा...
आ.श्री. ॐकारसूरीश्वरजीना सुशिष्य पू. मु. श्री जिनचंद्रविजयजीना सुशिष्यरत्न आ. श्री मुनिचंद्रसूरीश्वरजी - भीलडी तीर्थ.
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