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श्रीसूत्रकृताङ्गसूत्र - प्रथम श्रुतस्कंध की प्रस्तावना • श्री देवर्द्धिगणि माथुर संघना युगप्रधान हता. तेओश्रीनी निश्रामां थयेली वाचनामां नागार्जुन वाचनाना पाठ भेदो नोंधवामां आव्या छे. सूयगडांगमां पण आवा वाचना भेदोनी नोंध जोवामां आवे छे. टीकाकार श्रीए चार स्थळे चूर्णिकारश्रीए तेर स्थळे वाचना भेद आप्या छे. अन्य पाठ भेदो पण 'पठ्यते च' वगेरे उल्लेखथी दर्शाव्या छे. . दिगंबर परंपरा मान्य मूलाराधना (भगवती आराधना) नी अपराजितसूरि रचित विजयोदया टीकामां (पृ. ६१२मां) सूत्रकृतांगनो उल्लेख आ प्रमाणे छे :- "तथा सूत्रकृतस्य पुण्डरीकेऽध्याये कथितम्- 'ण कहेज्जा धम्मकहं वत्थपत्तादिहेयु' इति" सूत्रकृतांग सू. ६९० मां आने मळतो पाठ मळे छे. एटले दिगबंर परंपराना यापनीय संघमां पण सूत्रकृतांगनी पाठ परंपरा रही हती. • सूत्र ७-८ मां पंचभूतवादी चार्वाकना मतनुं वर्णन छे. सूत्र ६५६-६५७ मां आत्मषष्ठ एटले के सांख्य मतनी वात छे. सूत्र ६६०-६६३ मां ईश्वरकारणिक एटले के शुक्लयजुर्वेद (३१/२) मां बनावेला पुरुषवादनुं वर्णन छे. • सूत्रकृतांगसूत्रनी विविध हस्तलिखित प्रतिओमां घणां पाठ भेदो मळे छे. चूर्णिकारश्री सामे अने टीकाकारश्री सामे पण विविध पाठ भेदोमांथी क्यो पाठ स्वीकारवो ते समस्या हती. चूर्णिकारे स्वीकारेल पाठ मुजबनी पाठवाळी कोई प्रति टीकाकारश्रीने पण मळी नथी.
टीकाकार शीलांकाचार्यजीए पोतानी मूंझवण आ शब्दोमां रजू करी छे. "इह च प्रायः सूत्रादर्शेषु नानाविधानि सत्राणि दृश्यन्ते, न च टीकासंवादी एकोऽप्यादर्शः समुपलब्धः, अत एकमादर्शमङ्गीकृत्यास्माभिर्विवरणं क्रियते इति, एतदवग्म्य सूत्रविसंवाददर्शनाच्चित्तव्यामोहो न विधेय इति ।" (पत्र ३३६-१) • नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरिजीए पण... "वाचनानामनेकत्वान् पुस्तकानामशुद्धितः..." वगेरे शब्दोमां उपलब्ध आदर्शोनी स्थिति दर्शावी छे. • चूर्णिसम्मत पाठथी टीकाकार सम्मत पाठोमां घणां स्थळे तफावत आवे छे. पहेलां करतां बीजा श्रुतस्कंधमां वधु तफावतो जोवा मळे छे. बीजा श्रुतस्कंधनी चूर्णि अपेक्षाए बहु संक्षिप्त पण छे. • नियुक्तिः श्रुतकेवली आ. भद्रबाहुस्वामिए नियुक्तिनी रचना करी छे. सूत्रकृतांग नियुक्तिमा २०५ गाथाओ छे. आमां ते ते पदना निक्षेपा, उद्देश अध्ययननो सार अपायो छे. • चूर्णिः सूत्रकृतांगचूर्णि आगमोद्धारक सागरजी म. संपादित थई ऋषभदेव केशरीमल रतलाम द्वारा प्रसिद्ध थयेली. आ. प्र. पुण्यविजयजी संपादित संशोधित आ चूर्णिनो प्रथम भाग प्राकृत टेल सोसायटी द्वारा प्रकाशित थयो छे. बीजा भागना प्रकाशन माटे पण प्रयत्नो चालु थई गयाना समाचार मन्या छे. . आचारांग अने सूत्रकृतांगसूत्र उपर शीलांकाचार्यजीनी रचेली टीका मळे छे. आगमप्रज्ञ जंबुविजय म.सा. लखे छे के- "आना कर्ता शीलाचार्य छे. अत्यारे तेमनुं शीलांकाचार्य नाम प्रसिद्ध छे, छतां ए पोते ज पोतानो शीलाचार्य नामे उल्लेख करे छे एटले अमे पण शीलाचार्य नामनो उल्लेख करीए छीए. विक्रमना दशमा शतकमां आनी रचना थइ हशे." (सूयगडंगसुत्तंनी प्रस्तावना पृ. ३६) • श्री हर्षकुलगणिए वि. सं. १५८३ मां रचेली सूत्रकृतांग दीपिका- प्रकाशन भीमशी माणेक कयुं हतुं. • श्री साधुरंगे वि. सं. १५९९ मां रचेली सूत्रकृतांग दीपिकानुं प्रकाशन देवचंद लालभाई प्र. फंड सूरतथी थई
छे.
• आ. पार्श्वचन्द्रसूरिए सूत्रकृतांग बालावबोध मारु गूर्जर भाषामां को छे. • हर्मन जेकोबीए अंग्रेजीमां डॉ. शुब्रींगे जर्मन भाषामा अनुवाद कर्यो छे. • हिंदी भाषामा प्रथम श्रुतस्कंध टीका साथे अने बीजा श्रुतस्कंधना मूळ सूत्र मात्रनो हिंदी अनुवाद अंबिका दत्त ओझाए करेलो. महवीर जैन ज्ञानोदय सोसायटी राजकोट द्वारा वि. सं. १९९३-९५ मां प्रकट थयेल. अहीं अंबिका प्रसादना अनुवाद साथे सूत्रकृतांग प्रथम श्रुतस्कंध सटीक पुनः प्रकाशित थई रह्यो छे. • सूत्रकृतांग मूळसूत्र अने शीलांकाचार्य कृत टीकाना संशोधन माटे विद्वद्वर्य मुनिराजश्री जयानंदविजयजी