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________________ श्रीसूत्रकृताङ्गसूत्र - प्रथम श्रुतस्कंध की प्रस्तावना पदो छे. आचारांगना प्रथम श्रुतस्कंध करतां सूत्रकृतांगनुं प्रमाण डबल छे ए वात लगभग मळे छे. पद पूर्वकाळमां करोड़ो श्लोक- होवाना उल्लेख मळे छे, पण वर्तमानमा अति संक्षेपमां आगमो उपलब्ध थाय • सूत्रकृतांगमां बतावेला दार्शनिक विचारो, वादो कया दर्शनने लागु पडे छे ते बाबतो चूर्णिकारश्री अने टीकाकारश्रीए समजावी छे. जेम के प्रथम अध्ययन (सूत्र १३)मां अकारवाद एटले के आत्मा कशुं करतो नथी ए मतनुं निरूपण छे. आ मत सांख्यदर्शननो छे एवं चूर्णिकार अने टीकाकार श्रीए जणाव्युं छे. सू. १५-१६ नो आत्मषष्ठवाद सांख्योना शैवाधिकारीओनो छे एवं टीकाकारश्री जणावे छे. • सुख दुःख स्वकृत के परकृत नहीं पण नियतिकृत छे (सू. ६, २८, २९, ६६३, ६६५) बौद्धग्रंथ दीघनिकाय (पृ. ४७) मक्खलिगोसालना मतना वर्णनमां पण आवाज नियति-संगति शब्दो जोवा मळे छे. • क्यारेक चूर्णिकार अने टीकाकार श्रीना अभिप्रायमां तफावत जोवामां आवे छे. जेम के- चूर्णिकारना मते सू. २८ थी ४० नियतिवादनुं अने ४१ थी ५० अज्ञानवादनुं वर्णन छे. टीकाकारश्रीना मते ३३ थी ५० सूत्रमा अज्ञानवादनी चर्चा छे. (दीघनिकायन ब्रह्मजाल सूत्र (२३-२६)मां पण आवं वर्णन जोवा मळे छे.) . १६मा अध्ययन- नाम 'गाथा' के 'गाथाषोडशक' छे. सामुद्दक छंदमां आनी रचना थई छे. एवं नियुक्तिकारे जणाव्युं छे. वर्तमानमां आ छंदना लक्षण अने एना गाननी पद्धतिनी परंपरा लुप्त छे पण चूर्णि अने टीकाना उल्लेखो जोतां आ छंदोबद्ध रचना गावानी पद्धति हशे. • सूत्र ११-१२ अने ६४८-६५३ मां आवतुं तज्जीवतच्छरीरवादनुं वर्णन छे एवं वर्णन बुद्धना समकालीन अजित केसकंबलना वादनी विगत दीघनिकायना सामञफूलसूत्तमां पृ. ४१-५३ मां छे. • सूत्र-७०७मां (अध्ययन-२ क्रियास्थान) महावरे तेरसमे किरियाठाणे... मां तप्पत्तियं सावपज्जेत्ति आहिज्जति। अहीं आवश्यक चूर्णिमां असावज्जे पाठ छे ते वधु योग्य लागे छे एम आ. प्र. जंबुविजयजी म.सा. ए (पृ. १६४ टि. ११) सुयगडांगना संस्करणमा जणाव्युं छे.. • हीरालाल कापडियाए (आगमोनुं दिग्दर्शन पृ. ३९ मां) जणाव्युं छे के- "सूयगडमां इंद्रवज्रा छंदनो प्रयोग पच्चीस वार थयो छे.. • इत्थीपरिना नामर्नु अध्ययन... गाथानुष्ठुभी संसृष्टि नामे ओळखावायेल मिश्र छंदमां छे एम पद्य रचनानी औतिहासिक समालोचना (पृ. १८५-६)मा उल्लेख छे. . सूत्र २२५-२२९ मां केटलाक ऋषिओ वगेरेनी विगत छे. आसिल, पारासर, देविल, तारागण ऋषि वगेरे सचित्त पाणी व. पीवा छतां मोक्षे गया आq जाणी ने कोई शिथिल आचारवाळा न थाय एनी चेतवणी आपी छे. टीकाकारश्रीए स्पष्ट समजाव्युं छे के- भावचारित्र प्राप्त थया विना कोई मोक्षे जइ शकता नथी. • महाभारतना नवमा अने बारमा पर्वमा आसिन, देवल ऋषिनो उल्लेख मळे छे. वायुपुराणमां पण उल्लेख छे. पराशय व्यासमुं नाम छे अने पाराशर व्यासना पितानुं नाम छे. • सूयगडांगमां द्रव्यानुयोगनी चर्चा होवा छतां आ अंग ग्रंथनो समावेश चूर्णिकारश्रीए चरणकरणानुयोगमां को • सूयगडांगमां बंने उभयमां सूत्र रचना थयेली छे. चोथा अ. इत्थीपरिन्नामां जे पदो छे तेनी विद्वानो भारतीय छंद शास्त्रना दुर्लभतम प्रकारमा गणतरी करे छे. आर्यानुं आवं प्राचीनतर स्तर आचारांग (नवमा अध्ययन) उत्तराध्ययन (आठमुं अध्ययन) अने बौद्ध ग्रंथ सूत्रनिपातना ८ अने १४ मां प्रकरणमां ज जोवा मळे छे. विशेष जाणवा जर्मन विद्वान लुडवीग आल्सफोर्डना लेखनो अनुवाद महावीर विद्यालयना सुवर्ण महोत्सव ग्रंथ (इ. स. १९६८)मां प्रकट थयेलो छे. ते जुओ.
SR No.032699
Book TitleSutrakritanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size15 MB
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