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જામનગરને ઇતિહાસ. (પંચદશી કળા) ૩ર૧ धरी दाढ बाराह, शेषधारी मुगट सर ॥ मानधात महिपाल, धरा राखी अरधंगधर ॥ धरी पीठ पर धरण, क्रष्णरुप कच्छधरी करीयो ॥ वसुधा दोहणवार, पृथु गोवाल व्हे फरीयो । एहडी जमी प्यारी अगां, तंत लोभ लेवा तके ॥
वडहाथ जामविभा विना, जमी कोण समपि शके ॥ २ ॥ જામશ્રી વિભાજી ગુણવર્ણન છપ– छप्पय-जगभल विभो जाम, मोज महराण गणि जे ॥
__ जगभल विभो जाम, भुपसर छत्र भणि जे ॥
वेद पुरानमें जश गायो, ध्याये हौवत प्यारी ॥ . जामसुत्तको श्याम चतुरभुज लेगा खबर हमारी ॥६॥ सखीरी चतुर श्याम सुंदरसों मोरी लगन लगीरी ॥ लाख कहो अब एक न मार्नु उनके मिती पगीरी ॥ जा दीन दरस भयो तादीन तें दुबधा दूर भगीरी ॥ जामसुता कहे उर बीच उनकी भगति आन जगीरी ॥७॥
(मो मन परी है यह बान!) चतुरभुजके चरन यही हरि ना चहुं कछु आन ॥ कमलनयन बिशाल सुंदर, मंदमुख मुसुकान ॥ शुभग मुकुट मुहावनो शिर, लसे कुन्डल कान ॥ प्रगट भाल बिशाल राजत, भ्रोह मनहु कमान ।। अंग अंग अनंगकी छबी, पित पट्ट फहरान ॥ कृष्णरुपअनुप फोमै धरूं निशीदीन ध्यान ॥
जामसुतपरतापके भुजवार जीवन प्रान ॥८॥ દેવીજીને ઇસ રચનામું વિશેષ રૂપસે કૃષ્ણકાવ્યક પદરચના શૈલીકા હી ઉપયોગ કિયા है. और श्रमापा। अच्छ। ३५ हीया .
તીકવિ કૈમુદી લેખક તિપ્રસાદ.
भीश्र-निमय