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________________ જામનગરને ઇતિહાસ. (દશમી કળા ૧૯૯ रध पंचे सुरंग, जके वेदोगत जेता ॥ जप महा अष्ट सूरज जपे, पखांवडां ब्रद पाळवा ॥ हरहर सुकही माधव हरी, जाळो अळ वपु जाळवा ॥७॥ जळस्नान जान्हवि, समे प्रातःकरीआ सह ॥ पाटांबर पहरिया, शिष कर वेण समारह ॥ अंग अंग नंग उद्योत, जडित आभूषण जोपे ।। नकबेसर नासिका, उरुथळ हार आरोपे ॥ उछाहधरी असि आरुही, भांति अजब घण लजभरी। जदुनाथ साथ रहवण जरु, पावक झीलण परवरी ॥८॥ देख मरण दोयलं, भीमभारथ भड भग्गो ॥ देखमरण दोयलं, वेल लंकेश वळग्गो । देखमरण दोयलं, अश्वथामा तप हेठो ॥ देखमरण दरजोण, पूर जळमांहीय पेमे॥ दोयलं मरण देखे दुनि, नेक हुवा नर नह सति ।। अजमालसंग रहवण अमर, सहेल मरण सूरज सति ॥९॥ देखमरण दसकंध, मरण नह दीयो मंदो हर ॥ देखमरण दसरथ, कोशला मरण नको कर ॥ देखमरण जमदग्न, मरण रेणुक नस आयो । देखमरण पांडुर, मरण कुंता मन नायो । महीएति अगे चुकि मरण, तवे साखजग चंद तरण ॥ सजहुइ आज सूरजकुंवर, महासति देवण मरण ॥१०॥ सतवादी हरिचंद, जरु अजमल जाणे जग ॥ वाचा अजमल ब्रह्म, अजो क्षत्रिय दशरथ खग ॥ अजो कळह क्रणकुंभ, अजो रढरांण रढाल्छ । अजो पाथपत बाण, अजो भीमेण भुजालु ॥ सो अजो देख ववनो समो, केम सति सांसु करे । स्रगलोक लियण सूरजकुंवर, भ्रखवा झळां क्रम भरे ॥११॥ ૧ સતિ થવાનું “સહગમન વિધિ” નામનું વેદોક્ત શાસ્ત્ર છે તે વિધિપૂર્વક સતિ થયાં. ૨ અધિ=ડી
SR No.032687
Book TitleYaduvansh Prakash ane Jamnagarno Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMavdanji Bhimjibhai Rat
PublisherMavdanji Bhimjibhai Rat
Publication Year1934
Total Pages862
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size24 MB
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