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________________ नपुण्यात् कारिता स्व पुण्याय। श्री नेमिबिबाधिष्ठित मध्या सद्देवकुलिकेयं ॥४॥ शुभं भवतु ॥छः।। ये दोनों लेख विमलवसही के हैं, प्रथम तो नेमिनाथ प्रतिमा की चरण चौकी पर व दूसरा स्तम्भ पर है। लणगवसही में दो देहरियां अपने पिता और माता की स्मृति में बनाई थी जिसमें उपर्युक्त दूसरे लेख की ३ गाथाए अविकल हैं, केवल पहली गाथा में 'तच्चरणांभोज" और 'तच्चरण सरोज' का अन्तर है। अतः यहाँ सुमतिनाथ और पद्मप्रभ भगवान की देवकुलिकाओं के चतुर्थ श्लोक ही यहां दिये जा रहे हैं । (३) ...."तेन लुमतिना जिनमत निपुणेन श्रेयसे पितुरकारि । श्रीसुमतिनाथ बिबेन संयुता देवकुलिकेयं ॥४॥छ।६० ॥छ॥ (४) ....तेन सुमतिना मातुः श्रेयार्थ कारिता कृतज्ञन । श्रीपद्मप्रभबिबालंकृत सद्देवकुलिकेयं ॥४॥छ॥६०३॥छ। __ ये चारों लेख "श्री अर्बुद-प्राचीन-जैन-लेख संदोह" के लेखाङ्क १५०-५१ एवं ३५९-३६१ में प्रकाशित हैं। लेखाङ्क ३६० और ३६२ में सुमतिनाथ व पद्मप्रभ की पंच कल्याणक तिथियाँ हैं जिन्हें यहाँ नहीं लिखा गया है । श्री जयन्तविजयजी महाराज ने जैन सत्यप्रकाश वर्ष २ अंक १० में तीन अभिलेख प्रकाशित किये हैं जो गुडा-बालोतान के हैं। मादड़ी गाँव में यशोवीर का ननिहाल था। वहां इस समय जैनों की बस्ती नहीं है, साठ वर्ष पूर्व मादड़ी गाँव की सीमा में निकली हुई पांच प्रतिमाओं को यति राजविजयजी ने ला कर अपनी बगीची में घर देरासर बना कर विराजमान कर दी थी। उस मादड़ी गाँव में और भी अनेक प्रतिमाएं छिपी पड़ी हैं किन्तु उस समय गाँव का जागीरदार पावठा का ठाकुर अनुकूल न होने से प्राप्त करना तो दूर पर जैन संघ देख तक न सका था। इन तीन लेखों में दो लेख मंत्री यशोवीर के हैं, जो इस प्रकार हैं :१ संवत् १२८८ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ बुधे श्री खं (पं)डेरक गच्छे श्री यशोभद्र सूरि संताने दुसाध श्री उदयसिंह पुत्रेण मंत्री श्री यशोवीरेण स्वमातुः श्री उदर्याश्रयः श्रेयसे मादड़ी ग्राम चैत्ये जिन युगलं कारितं प्रतिष्ठितं च श्री शांतसूरिभिः । अर्थात्-सं० १२८८ जेठ सुदि १३ बुधवार को श्री खंडेरक गच्छीय श्री यशोभद्रसूरिजी की परम्परा की आम्नाय वाले दुःसाध विरुदधारक श्री उदय ६० ]
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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