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________________ धरणेन्द्र ने चेतावनी दी-अरे खान ! तुम पार्श्वनाथ के कोप-भाजन क्यों बनते हो? मैं धरणेन्द्र, पार्श्वनाथ का प्रधान हूँ, ध्यान रख कर सोचो ! ____ लश्कर में मार पड़ने लगी, हाथी घोड़ों का संहार होने लगा, स्थान-स्थान पर मनुष्य मरने लगे। बीबी, बन्धु, बेटे नजर देखते अकेले जाने लगे, धीरज टूटने लगा। जहाँ जालोरी संकोसी था, वर्षा की बूंद भी न गिरी और तेज धूप तपने लगा। प्रजा पुकार करने लगी-खूनकार ! पार्श्वनाथ मूत्ति को छोड़ो, सब की सार करो! खान ( भीनमालं के हाकिम ) ने कहा-मालिक ! इसे मत छोड़ो, इससे बहुत काम निकलेंगे, अधिक धन की मांग करो! धरणेन्द्र ने सोये हुए मल्लिक गजनीखान को नीचे गिरा दिया। वह मुख से पार्श्वनाथ ! पार्श्वनाथ ! कहने लगा। आवाज आई-मूर्ति को छोड़ो तो तुम्हें छोडूंगा ! उसे मार्मिक प्रहार से मारा, अंग में अपार रोग उत्पन्न हो गया, अपार वेदना हुई। अन्न जल के प्रति अरुचि हो गई, निद्रा दूर चली गई । मरणान्त समय आया देख गजनीखान ने विचारा-पार्श्व जिनेश्वर मान चाहते हैं ! उसने कहा - प्रभु, मेरी वेदना रात्रि में शान्त हो गई तो प्रातःकाल आपको अवश्य छोड़ दूंगा ! खान के ऐसा कहते ही वेदना शांत हो गई। खान ने पार्श्वनाथ को सिंहासन पर बैठा कर निरभिमान हो पूजा-सलाम करते हुए कहने लगा___अल्लाह, अलख और आदम तुम्ही हो, तुम्हारे जैसा कोई नहीं ! पीर, पैगम्बर, खुदा और सुलतान तुम्हीं हो! बालक पर कृपा करो! तुम्हारी आज्ञा कभी उल्लंघन नहीं करूंगा। पीर तो बहुत से हैं पर हे तेवीसवें राय (पार्श्वनाथ ! ) आप जैसा अन्य कोई नहीं ! इतनी स्तुति करने के पश्चात् संघ को बुलाकर उन्हें पार्श्वनाथ प्रतिमा सौंप दी। जालोर नगर में उत्सव हुआ। नित्य नये वाजित वजने लगे। सधवा स्त्रियाँ भास गाने लगी। रंग भर के खेलने लगे, याचकों की आशा पूर्ण हुई। - भ. पार्श्वनाथ की प्रतिमा को रथारूढ़ करके आडंबर पूर्वक जालोर से भिन्नमाल पहुंचाया। संघवी वीरचंद हर्षित हुआ और इस अवसर पर उसने महोत्सव किया, सतरह-भेदी पूजा रचाई। चारों दिशाओं के संघ को आमन्त्रित कर महोत्सव के पश्चात् संघ को पेहरावणी करके बहुमान दिया। शोक-सन्ताप दूर होकर मन के मनोरथ सिद्ध हुए। । सतरहवीं शती की इस घटना को कवि पुण्यकमल ने वणित किया है। अन्य तीर्थमाला, चैत्य-परिपाटी आदि में भी वर्णन पाया जाता है। ५८ ]
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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