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________________ श्री संघ ने वैसा ही किया पर सातवें दिन एक छः री पालता संघ आया, जिसके आग्रहवश दरवाजा खोलना पड़ा । सबने प्रभु दर्शन किये, अंग जुड़ गये पर थोड़ी रेखाएं रह गईं जिससे खड्ड े रह गए । इसी अरसे में जालोर के सूबेदार के यहाँ भयानक उपद्रव हुआ । उसने दीवान के कथन से जीरावला जाकर भ० पार्श्वनाथ की प्रतिमा के समक्ष शिर मुंडा कर माफी मांगी, जिससे उन्हें शान्ति हुई । तब से यहां सिर मुंडाने की प्रथा चली जो सोलहवीं शती तक थी । भीनमाल की घटना सं० १६५१ में देवल की ईंट खोदते हुए भिन्नमाल में श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमा प्रकट हुई । श्री वीर प्रभु का समवशरण तथा सुन्दर प्रतिमा, श्री शारदा की मूर्ति आदि ८ मूर्तियाँ प्रगट हुई । यतः — ईंट खणतां देवल भणी ए, प्रगटचा श्री पास । संवत सोल एकावने, बहु पुगी आस ॥८॥ समवशरण श्री वीर नुं ए, प्रतिमा सुन्दर सार । मूरत श्री सारद तणी ए, आठ मूरत अंबार ॥९॥ [ भिन्नमाल पार्श्वस्तवन ] मेहता लक्ष्मण और भावडहरा गच्छ के चतुर्दशी पक्ष के पन्यास आदि यह देख कर अति प्रसन्न हुए । शान्तिनाथ जिनालय में यह प्रतिमा लाये और स्नात्रमहोत्सव, गीत-गान होने लगे । यह बात उस समय जालोर नगर में देशपति गजनीखान का राज्य था और उसका सेवक भिन्नमाल में शासक था । उसने खान को जाकर कहा- साहेब ! पीतल का अद्भुत बुतखाना प्रगट हुआ है, वह आप लाओगे तो बहुत सा द्रव्य देंगे । खान ने यह सुनकर तुरन्त इस प्रतिमा को अपने पास मंगवा ली और कहने लगा कि आज मुझे बहुत पीतल मिला है, हाथी के लिए घण्ट कराऊंगा । जब सर्वत्र फैली तो चतुविध संघ एकत्र हुआ । गजनीखान के पास जाकर प्रार्थना की। महाजनों ने मान पूर्वक जवाब मांगा। उन्होंने कहा पीतल का धन हमारे पास लो और बुतखाना छोड़ दो ! बाबा आदम का यह रूप है, इसके बहुत स्वरूप हैं जिसकी सेवा करनी चाहिए, उसे नष्ट कैसे किया जाय ? सलाम करके आप पार्श्वनाथ को छोड़ दें, जिससे सबके मन की आशा पूर्ण हो । हम चार हजार पीरोजी (मुद्रा) दे देंगे ! ५६ ]
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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