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की ; भाण्डागारिक छाहड़ कारित श्री शान्तिनाथ स्वामी के महत्तम बिम्ब की, वैद्य देह कारित अष्टापद ध्वजा - दण्ड की तथा अन्य भी बहुत से जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा बड़े विस्तार से श्री सामन्तसिंह महाराजा के विजयराज्य में की । यह प्रतिष्ठा महोत्सव श्री जिनचन्द्रसूरिजी के कर कमलों से सब के चित्त को चमत्कार पैदा करने वाला और पापनाशक था । प्रसन्न चित्त महाराजा श्री सामन्तसिंह के सानिध्य से सकल स्वपक्ष-परपक्ष आह्लादकारी व विधिमार्ग प्रभावक प्रचुर द्रव्य व्यय से इन्द्र महोत्सवादि सम्पन्न हुये । मिती ज्येष्ठ बदि ११ को वा० देवमूर्ति गण को अभिषेक पद व मालारोपण - नन्दिमहोत्सवादि हुए ।
संवत् १३४४ मिती मार्गशीर्ष सुदि १० को महावीर विधि चैत्य में सा० कुमारपाल के पुत्र पं० स्थिरकीति गणि को श्री जिनचन्द्रसूरिजी ने आचार्य पद देकर श्री दिवाकराचार्य नाम से प्रसिद्ध किया ।
संवत् १३४५ आषाढ़ सुदि ३ को मतिचन्द्र और धर्मकीत्ति की दीक्षा हुई । बैशाख बदी १ को पुण्यतिलक, भुवनतिलक और चारित्रलक्ष्मी साध्वी की दीक्षा हुई । राजदर्शन गणि को वाचनाचार्य पद से विभूषित किया ।
सं० १३४६ माघ बदि १ को सा० क्षेमसिंह भा० बाहड़ द्वारा कारित सुवर्णगिरि के श्री चन्द्रप्रभ जिनालय के पास आदिनाथ नेमिनाथ बिम्बों को मण्डप के खत्तक में व समेतशिखर के २० बिम्बों का स्थापना महोत्सव हुआ ।
श्री जिनप्रबोधसूरि जी के स्तूप में मूर्ति की स्थापना व ध्वज - दण्डारोपण महोत्सव सा० अभयचंद द्वारा किया गया । इनकी प्रतिष्ठा बैशाख सुदि ७ को हुई थी व निर्माण भी सा० अभयचंद ने करवाया था ।
सं ० ० १३४९ मिती भाद्रपद कृष्ण ८ को साधर्मिक सत्राकार संघपुरुष अभयचन्द्र सुश्रावक की संस्तारक दीक्षा हुई, इनका नाम अभयशेखर
सा० रखा गया ।
चातुर्मास बीजापुर करके
अनेक नगरों के संघ एकत्र
बदि ५ को जावालिपुर
श्री जिनचन्द्रसूरिजी महाराज सं० १३५३ का जावालिपुर संघ की विनती से विहार करके पधारे । होने पर चैत्य परिपाटी आदि महामहोत्सवपूर्वक वैशाख से प्रस्थान करके बहुत सी मुनि मण्डली व चतुर्विध संघ सहित आबू तीर्थ की यात्रार्थ पधारें । विधिमार्ग संघ ने इन्द्र पद, स्नात्र, ध्वजारोपादि महोत्सवों के उद्देश्य से बारह हजार द्रम्म सफल किये। इसके बाद कुशलपूर्वक संघ
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