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________________ श्री जिनचन्द्रसूरि सं० १३४२ मिती बैशाख शुक्ल १० के दिन जावालिपुर में श्री महावीर स्वामी के विधि चैत्य में श्री जिनचन्द्रसरिजी महाराज ने महा महोत्सव पूर्वक प्रीतिचन्द्र, सुखकीत्ति नामक क्षुल्लक द्वय व जयमंजरी, रत्नमञ्जरी, शीलमञ्जरी नामक क्षुल्लिका त्रय दीक्षित की। उसी दिन वाचनाचार्य विवेकसमुद्र गणि को अभिषेक पद, सर्वराज गणि को वाचनाचार्य पद, बुद्धिसमृद्धि गणिनो को प्रवत्तिनी पद से विभूषित किया। सप्तमी के दिन सम्यक्त्व ग्रहण, मालारोपण, सामायकारोप अदि नन्दि-महोत्सव किए गए। मिती ज्येष्ठ बदि ९ को सेठ क्षेमसिंह द्वारा निर्मापित श्री अजितनाथ स्वामी की २७ अंगुल प्रमाण की रत्नमय प्रतिमा, ऋषभदेव, नेमिनाथ और पार्श्वनाथ प्रतिमाओं की तथा मंत्री देदा कारित युगादिदेव, नेमिनाथ, श्री पार्श्वनाथ बिम्बों १. देधाकुलि सिरि देवराउ मंती सुपसिद्धउ कामलदेवि कलत्तु तासु सीलिण सुसमिद्धत ताण पुत्त सिरिखंभराउ बालुवि गुणसायर लइय दिक्ख गुरु पासि सिक्खइ सिक्ख करि यरु जावालिनयरि वीरह भुवणि जिणपबोह गुरु चक्कवइ जिणचंदसूरि तसुनामु धुरि गुरु उच्छवि नियपह ठवह ॥४१॥ [ षट्पद में ] श्री जिनकुशलसूरिजी कृत "श्री जिनचन्द्रसूरि चतुःसप्ततिका" में श्री जिनप्रबोधसूरिजी के पट्ट पर इन्हें अभिषिक्त करने का वर्णन इस प्रकार हैं जुगवर नव नवुच्छव पवरे, जावालिपुरवरे पत्तो। सिरिजिणपबोह गुरुणो, वंदिय गुरु विबुह कम कमला ॥३०॥ तत्थ सिरि वीर विहि चेइयंमि सुरवइ विमल तुल्लंमि। तेरहसय इगयाले (१३४१) वइसाह सुद्ध तोयंमि ॥३१॥ सिरि जिणपबोह गुरुणा, निय हत्थेणं स गच्छ भार धुरा। गुरु रयणाणं तुम्हाण, संठविया संघ पच्चक्खं ॥३२॥ मंति कुल कमल दिणयर, नाणा मइ रयण रोहण गिरिस्स । तुह सूर मंत जा सो, गुरु राएहिं कओ ठाणे ॥३३॥ जिण तुल्ल रूव तिहुयण, माणिदण चंद चंदिमा पडिम । सिरि जिणचंद मुणीसर, इइ नाम देइ तुम्ह गुरु ॥३॥ [ ३३
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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