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________________ सं० १३३२ मिती जेठ बदि १ शुक्रवार के दिन श्री जावालिपुर में सर्व समुदाय के समक्ष महान् विस्तार से क्षेमसिंह श्रावक ने प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन किया, जिसमें नमि-विनमि सेवित श्री आदीश्वर भगवान, महावीर स्वामी, अवलोकन शिखर-श्री नेमिनाथ बिम्बों, शाम्ब-प्रद्युम्न प्रतिमा श्री जिनेश्वरसूरि मूत्ति, धनद यक्ष मूत्ति व स्वर्णगिरि श्री चन्द्रप्रभ स्वामी व वैजयन्ती की प्रतिष्ठा कराई। इस अवसर पर श्री योगिनीपुर-दिल्ली निवासी मंत्रिदलीय हरु श्रावक ने श्री नेमिनाथ स्वामी की, सा० हरिचन्द्र श्रावक ने श्री शान्तिनाथ भगवान की व अन्य श्रावकों ने भी बहुत से बिम्बों की प्रतिष्ठा करवाई। मिती ज्येष्ठ बदि ६ को सुवर्णगिरि पर श्री चन्द्रप्रभ स्वामी का ध्वजारोपण हुआ। ज्येष्ठ बदि ९ को स्तूप में श्री जिनेश्वरसूरिजी की मूत्ति स्थापित की गई। उसी दिन विमलप्रज्ञ को उपाध्याय पद व राजतिलक मुनि को वाचनाचार्य पद से विभूषित किया गया। मिती ज्येष्ठ सुदि ३ को गच्छकीत्ति, चारित्रकीति, क्षेमकीत्ति मुनि और लब्धिमाला, पुण्यमाला साध्वियों की दीक्षा सम्पन्न हुई। ___ सं० १३३३ माघ बदि १३ को श्री जावालिपुर में कुशलश्री गणिनी को प्रत्तिनी पद से अलंकृत किया गया। इसी वर्ष सा० विमलचन्द्र सुत सा० क्षेमसिंह, सा० चाहड़ समायोजित मंत्रि देदा के पुत्र मंत्री महणसिंह के पृष्ठ रक्षक प्राग्भार से सा० क्षेमसिंह, सा० चाहड़, सा० हेमचन्द्र, सेठ हरिपाल योगिनीपुर वास्तव्य सा० वेणू के पुत्र पूर्णपाल, सौणिक धांधल सुत सा० भीम व उपर्युक्त देदा के पुत्र मन्त्री महणसिंह प्रमुख समस्त विधि संघ के गाढ उपरोध से श्री शत्रु जय महातीर्थ की यात्रा के हेतु मिती चैत्र बदि ५ को जावालिपुर से प्रस्थान हुआ। सद्गुरु श्री जिन प्रबोधसूरिजी महाराज के सानिध्य में श्री जिनरत्नाचार्य श्री लक्ष्मीतिलकोपाध्याय, श्री विमलप्रज्ञोपाध्याय, वा० पद्मदेव गणि वा० राजतिलक गणि आदि २७ साधु सेवित चरण कमल व प्र. ज्ञानमाला गणिनी, प्र० कुशलश्री, प्र. कल्याणऋद्धि प्रभृति २१ साध्वियों का परिवार साथ था। धर्म प्रभावना करते हुए श्री श्रीमालनगर के श्री शान्तिनाथ विधि-चैत्य में विधि संघ ने द्रम्म १४७४ सफल किये। पालनपुरादि में विस्तार से चैत्यप्रवाड़ी करके श्री तारंगाजी पहुंचे। सा० नींबदेव सुत सा० हेमा ने द्र० ११७४ सग्गं सादिउ कामो छत्तीस गुहिं आउहिंच निउणं सरलं धीरं गम्भीरं पहु तुमं नाउं॥४६॥ ससि गज गज३ ससि' वरिसे आसोए किण्ह पंचमी दिवसे । सपए संखेवेणं सय हत्थेणं ठविय तुरियं ॥४७॥ ३० [
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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