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________________ भी पराभव करने वाले, लोकोत्तर ज्ञान के भण्डार श्री जिनेश्वरसरि महाराज ने श्री जावालिपुर में विराजते अपना अन्तिम समय ज्ञात कर सर्व संघ के समक्ष सं० १३३१ मिती आश्विन कृष्ण ५ को प्रातःकाल अनेक गुण-मणि के निधान वा० प्रबोधमूर्ति को अपने पट्ट पर स्थापित किया' और उनका नाम श्री जिनप्रबोधसूरि दिया। उस समय श्री जिनरत्नसूरिजी पालनपुर थे अतः उन्हें आदेश दिया कि चौमासे बाद समस्त गच्छ-समुदाय को एकत्र कर शुभ मुहूर्त में विस्तार पूर्वक आचार्यपद स्थापनोत्सव कर देना। श्री जिनेश्वरसरिजी ने अनशन ले लिया और पंच परमेष्ठी के ध्यान में समस्त जीवों को क्षामणा पूर्वक आश्विन कृष्ण ६ को रात्रि दो घड़ी जाने पर स्वर्ग की ओर प्रयाण कर गये। दूसरे दिन प्रातःकाल समस्त राजकीय लोगों के साथ बाजे गाजे से समारोह पूर्वक सूरिजी का अग्नि-संस्कार किया गया। उस स्थान पर सर्व समुदाय के साथ सा० क्षेमसिंह ने स्तूप निर्माण कराया। कविपल्हु आदि कृत षटपदानि में श्री जिनेश्वरसूरि के परिचय के साथ जावालिपुर के स्तूप को पापनाशक और मनवंछित पूर्ण करने वाला लिखा है। यहां एतद्विषयक दो पद्य उद्धत किये जाते हैं "स्वर्णगिरि शिखरालंकार श्री चन्द्रप्रभ-श्री युगादिदेव-श्री नेमिनाथ प्रासाद विधापन श्री शत्रुञ्जयोज्जयन्तादि महातीर्थ सर्वसंघयात्रा कारापण उपार्जित पुण्य प्रासादरोपित कलश ध्वजाभ्यां सा० क्षेमसिंह सा० चाहड़ सुश्रावकाभ्यां स्वश्रेयसे" वाक्यों द्वारा उनके स्वर्णगिरि पर प्रासाद निर्माण और संघयात्रादि का उल्लेख है। यह पुस्तक उन्होंने सं० १३५१ माघ बदि १ को पालनपुर में श्री जिनप्रबोधसूरि पट्टालंकार श्री जिनचन्द्रसूरिजी के उपदेश से खरीद की थी। इसी विमलचन्द्र को पुत्री साऊ-रूयड़ ने श्री जिनेश्वरसूरिजी के पास पालनपुर में दीक्षा ली थी और उसका नाम रत्नवृष्टि रखा गया था। यह दीक्षा सं० १३१५-१६ में आषाढ़ सुदि १० को हुई थी। सं० १३३४ मार्गशीर्ष सुदि १३ को इन्हीं रत्नवृष्टि साध्वी को प्रवत्तिनी पद से विभूषित श्री जिनप्रबोधसूरि ने किया और सं० १३६६ में श्री जिनचन्द्रसूरिजी के भीमपल्ली से पत्तन, खंभात और महातीर्थों की यात्रा के लिए निकले संघ में ये रत्नवृष्टि १५ ठाणों से साथ थी। १. सिरिजावाल पुरंमि ठिएहि, जहिं नियअंतसमयं मुवि । नियय पट्ट मि सइंहत्थि संठाविओ वाणारिउ पबोहमुत्ति गणि ॥३०॥ [श्री जिनेश्वरसूरि संयमश्री विवाह वर्णन रास ] २८ ]
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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