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श्रीमालनगर पधार गये। वहाँ कई दीक्षा और प्रतिष्ठादि उत्सव हुए। मिती आषाढ़ सुदि १० को श्रीमालनगर में जगद्धर कारित समवसरण की प्रतिष्ठा और शान्तिनाथ स्वामी की स्थापना हुई। उसी दिन जावालिपुर में देवगृह का प्रारम्भ हुआ।
सं० १२७९ मिती माघ सुदि ५ को जालोर में अर्हद्दत्त गणि, विवेक श्री गणिनी, शीलमाला गणिनी, चन्द्रमाला गणिनी. और विनयमाला गणिनी की दीक्षा सम्पन्न हुई।
सं० १२८१ मिती वैशाख सुदि ६ को श्री जिनेश्वरसूरिजी के सान्निध्य में विजयकीत्ति, उदयकीर्ति, गुणसागर, परमानन्द और कमलश्री गणिनी की दीक्षा हुई। मिती ज्येष्ठ सुदि ९ को जावालिपुर में श्री महावीर जिनालय पर ध्वजारोपण हुआ था।
___ सं० १२८८ मिती भाद्रपद शुक्ल १० को स्तूप-ध्वज प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। पौष शुक्ल ११ को शरच्चंद्र, कुशलचन्द्र, कल्याणकलश, प्रसन्नचन्द्र, लक्ष्मीतिलक गणि, वीरतिलक, रत्नतिलक नामक साधु और धर्ममति, विनयमति गणिनी, विद्यामति गणिनी और चारित्रमति गणिनी को भागवती दीक्षा दी गई।
इसी ग्रन्थ के खरतर गुरु गुण वर्णन छप्पय में
माह छट्टि जालउरि सुद्ध तहि ठविय जिणेसर बारह अठहत्तरइ रूप लावन्न मनोहर जिणपबोहसूरि आसोज पंचमि जालउरय भयउ इकतीस वरसि अनुतर सइ पट्ट तरु इणिपरि लयउ॥८॥
जिनेश्वरसूरि सप्ततिका में
तत्तो सुवण्णगिरि मणहरम्मि सुपइट्ट लट्ट विजयंमि । निच्चल सीमा पच्चल अविचल गुरु गिरि विभत्तमि ॥३३॥ अब्भुय भुयबल लच्छीवल्लह वक्कहार राय रेहिल्ले । तित्थप तित्थ पसत्थे, जावालिपुरे विदेहिव्व ॥३४॥ चाउद्दिसि चउविह संघ चउविहामर निकाय परियरिओ। जिणवइ पनिहत्थो सव्वदेवसूरि सुहम्मिदो ॥३५॥ गय हय रवि (१२७८) वरिसे, माहसुद्ध छट्ठीइ तुह पयभिसेय । सिरिवीर मंदरमि कासी जिणस्सेव ॥३६॥चतुभिः कलापकम्।।
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