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________________ सं० १२७५ में ज्येष्ठ सुदी १२ को यहीं पर भुवनश्री गणिनी, जगमति, मङ्गलश्री-तीन साध्वियां और विमलचन्द्रगणि व पद्मदेव गणि की दीक्षा सम्पन्न आदि की बेगड़ शाखा की प्रशस्ति है जिसमें जालोर में मंत्री कुलधर के द्वारा प्रासाद निर्माण का उल्लेख तत्पुत्रोऽय कुलधरः कुलमार धुरन्धरः प्रौढ प्रताप संयुक्तः शत्रूणां तपनोपमः ॥१३॥ श्री जावालिपुरे भिन्नमाले धीबाग्मट तथा प्रासादाः कारिता स्तेन निज वित्त व्ययाद्वरा ॥१४॥ पृ० ७ में श्री शान्तिनाथजी के भण्डार, खंभात की अभयतिलकोषाध्याय कृत श्री पंच प्रस्थान व्याख्या की प्रशस्ति प्रकाशित हुई है जो श्री लक्ष्मीतिलकोपाध्याय संशोधित है। इसकी अपूर्ण प्रशस्ति में मानदेव, कुलधर, बहुदेव, यशोवद्धन भ्राता और उनके वंशजों के दीक्षोत्सवादि के साथ-साथ जावालिपुर के वीर जिनालय में पार्श्वनाथ भगवान की देवकुलिका निर्माण कराने का उल्लेख इस प्रकार है"श्री जावालिपुरेऽन्न देवगृहिकां पार्श्वस्य वीरे शितुश्चत्ये" इसी वंश की एक प्रशस्ति जो श्री अभयतिलकोपाध्याय कृत द्वयाश्रय महाकाव्य वृत्ति पत्र २७३ की है, की निम्न दो गाथाएं यहाँ उद्धृत की जाती हैं जिनमें जावालिपुर सम्बन्धी उल्लेख द्रष्टव्य है-- श्री जावालिपुरे च वीर भवने श्री पावं तीर्थंशितुः सौवं पुण्य महोनु देवगृहकं नमल्य शाल्युनतम् यः प्राचीकर दुद् ध्वजं हिमवता कूटं तनजं निलं स्वर्णाचा ऽऽत्मजया सह प्रहित मद्वार्दोपचारे कृते (?) ॥१६॥ सन्तुष्ठोदसिंहराट् प्रहितया नांदी निनाद स्पृशा श्रीकर्यामल कारि धींध इतरः स्वास्नुः स्वएवौकसि श्री देव्या स्वय मतेया कुल कला द्रव्यर्जुता सत्यता साधुत्व प्रिय वादितादिक गुणैराकृष्टये वोच्चकः ॥१७॥ श्री चन्द्रतिलकोपाध्याय कृत अभयकुमार चरित्र की मुनिश्री पुण्यविजयजी के संग्रह की प्रति की पुष्पिका (गा० ४८ ) में जो कुमारगणि रचित है में सेठ २२ ]
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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