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६—सं० १६८३ आषाढ़ बदि ४ गुरूवार को सूत्रधार उद्धरण के पुत्र तोडरा, ईसर टाहा, दूरा, होराने बनवाई और आ० विजयदेवसूरि ने प्रतिष्ठा की ।
- यह लेख किस स्थान खुदा है पता नही, केवल १ श्लोक है जिसमें रैवतगिरि, शिखर, सारणाद्वि, नन्दिवर्द्धन गिरि, सौगन्धिक पर्वत, श्रीकलशपर्वत पर श्रीनाथजी के चरश वन्दना का उल्लेख हैं ।
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- सं० १६८१ मिती चैत वदि ५ गुरूवार को मुहणोत सा० जेसा - जसमादे के पुत्र सा० जयमल भार्या सोहागदेवी ने श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा बनवाकर श्री महोत्सवपूर्वक तपा गच्छाचार्य श्रीविजयदेवसूरि के आदेश से जयसागर गणि से प्रतिष्ठित करवाई ।
९ – सं० १६८४ माघ सूदि १० सोमवार को मेडता निवासी ओसवाल प्रामेचा गोत्री सं ० हर्षा की लघुभार्या मनरंगदे पुत्र संघपतिसामोदास ने श्रीकुंथुनाथ बिंब बनवाकर तपा गच्छीय की विजयदेवसूरि आचार्य विजयसिंहसूर के पास सपरिवार प्रतिष्ठा कराई ।
१०- - जालोर के बाहर सांडेलाव नामक तालाब पर चामुंडा माता के मन्दिर के पास एक झोंपड़ी में 'चोसठ जोगणी' नाम से प्रसिद्ध जैन प्रतिमा पर यह अभिलेख खुदा है । सं० १९७५ वैशाख बदि १ (सन् १११९ ता० २९ मार्च) शनिवार को जावालिपुरीय चैत्य में वीरक के पुत्र खांगत, उबोचन के पुत्र शुभंकर खेहड़ ने स्वपुत्र देवंग – देवधर ? तथा भार्या जिनमति के प्रोत्साहन से सुविधिनाथ देव के खत्तक का द्वार धमार्थ बनाया - इस प्रकार का उल्लेख है ।
११ – सं० १२९४ में जावालिपुर के महावीर जिनालय में श्रीमालीय सेठ वीसल के पुत्र नागदेव के देल्हा, सलखण, झांपा नामक पुत्रों में से झांपा के पुत्र बीजा और देवा ने अपने पिता झांपा के कल्याणार्थ करोदि: ( ? ) कराई, यह अभिलेख तोपखाने में लगा हुआ है ।
१२ – सं० १३२० माघ सुदि १ को नाणकीय गच्छ प्रतिबद्ध जिनालय में महाराज श्री चंदनविहार में श्री क्षीवरायेश्वर स्थानापति भट्टारक रावल लक्ष्मीधर ने प्रभु श्री महावीर स्वामी के आसोज अष्टाह्निका की पूजा के लिए १०० द्रम्म दिए जिसके व्याज में से मठपति- गोष्ठिकों को १० द्रम व्यय करना होगा । उल्लेख वाला यह लेख तोपखाने के जनाना गैलेरी में लगा है ऐसा भांडार - कर साहब लिखते हैं ।
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