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________________ ३-यह लेख उपर्युक्त तोपखाने की पश्चिमी परसाल के स्तम्भ पर उत्कीणित है। यह २७ पंक्ति का लेख सं० १३५३ बैशाख बदि ५ ( ई० १२९६ ता० २३ अप्रैल ) सोमवार का है। सुवर्णगिरि के नरेश्वर महाराउल सामंतसिंह और उनके पादपद्मोपजीवी श्री कान्हड़देव के राजज्यकाल में नरपति नामक श्रावक ने अपनी धर्मपत्नी नायकदेवी के पुण्यार्थ अपने उस मकान को जो बाहर के लिए चालान होने वाले माल को रखने में काम आता था, धर्मदाय रूप में भेंट किया। उसके भाड़े की आमदनी से प्रतिवर्ष श्री पार्श्वनाथ देवालय में पंचमी के दिन विशेष पूजादि कार्य कराये जाएं, यह उद्देश्य था। इस लेख में यहीं के अधिवासी संघपति गुणधर का नाम और ठकुर आंबड़ की वंशावली दी है। उसके पुत्र ठकुरजस के पुत्र सोनी महणसिंह का पुत्र ही दानपति-नरपति था । महणसिंह के दो पत्नियां थी। माल्हणि और तिहुणा। माल्हणि के रत्नसिंह, णाखो, माल्हण और गसिंह नामक पुत्र थे। दूसरी पत्नी तिहुणा के नरपति, जयता और विजयपाल तीन पुत्र थे। इन सबकी 'सोनी' उपाधि थी। नरपति के दो स्त्रियाँ थी। १ नायक देवी और २ जाल्हण देवी। नायक देवी के पुत्र लखमीधर, भुवणपाल और सुहड़पाल थे। नरपति की प्रथम स्त्री नायक देवी के पुण्यार्थ उसके परिवार द्वारा यह धर्मदाय भेंट की गई थी। ४-सं० १६८१ चैत्र बदि ५ गुरूवार को राठौड़ सूरसिंह के उत्तराधिकारी गजसिंह के राज्य में मुहणोत ओसवाल सा० जेसा की भार्या जयवंतदे के पुत्र जयराज भार्या मनोरथदे के पुत्र सा० सादा, सुभा, सामल, सुरतान आदि सपरिवार ने सुवर्णगिरि दुर्ग स्थित कुमरविहार के श्रीमहावीर चैत्य में जेसा-जसवंत के पुत्र सा० जयमलजी जिनकी बड़ी भार्या सरुपदे के पुत्र सा० नयणसी, सुन्दरदास, आसकरण थे और लघु भार्या सोहागदे के पुत्र सा० जगमालादि पुत्र पौत्रों के श्रेयार्य सा० जयमलजी ने श्रीमहावीर बिम्ब की प्रतिष्ठा महोत्सव पूर्वक सुविहित क्रियोद्धारक तपागच्छीय श्री आणंदविमलसूरि के पट्टप्रभाकर श्रीविजयदानसूरिहीरविजयसूरि-विजयसेनसूरि के पट्ट स्थित श्रीविजयदेवसूरि के आदेश से महोपाध्याय विद्यासागर शि० सहजसागर के शि० पं० जयसागर गणि ने की। ५–सं० १६८३ आषाढ़ बदि ४ गुरूवार को जालोर-स्वर्णगिरि दुर्ग पर महाराज गजसिंह के राज्यकाल में मुहणोत मं० अचला के पुत्र मं० जसाभार्या जैवंतदे पुत्र मं० जयमल भार्या १ सरूपदे २ सुहागदे पुत्र नयणसी, सुन्दरदास, आसकरण, नरसिंहदास आदि कुटुम्ब सहित अपने श्रेयार्थं श्रीधर्मनाथ प्रतिमा कराके उपर्युक्त तपा गच्छीय श्रीहीरविजयसूरिजी के पट्टालंकार श्रीविजयसेन सूरि...... ने प्रतिष्ठा की। १०६ ]
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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