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________________ ता कारहि मंडणू दोहग खंडणु पहिरावणी ता वलि मंडावहि भोगु करावहि अगरि कपूर ता अभउ दियावहि पूय रयाविहि वयणु भरहि ता केलिहि खंभा नच्चहि रंभा सुरंग | सुचंगु ॥ कप्पूर । वज्जहि नंदिय तूर ॥ ६ ॥ हरिसिहि तिव नच्चति । ता घोडु कुदेविणु मंगल देविणु ता रंभा हरणी सुरवर घरणी जिम अज्जवि समरंति ॥ ता गुज्जर रमणी सुहुगुरु वयणी उच्छउ करहि ता मिलियउ लोऊ हुयउ पमोऊ जयउ जयउ जिण ९४ ] 4 ता उदय-विहारू ता असुर सुरिंदा खयर नरिंदा पक्खिवि ता तासु पइट्ठा कियइ विसिट्ठा सीस जयवंतू ता धम्म कहंतू जगि सारोद्धारू कारिउ कुलधरि धुणाविउ जिणिसरसूरि सुरंमु । मंति । सी धुणंति ॥ ॥ श्री महावीर बोलिका समाप्ता ॥ धम्मु ॥७॥ इंदु | मुणिदु ॥ ८ ॥
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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