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________________ परम पुरुष नव हस्त तनु भगवंत मनन्त गुणं सुततु नत पूरित काम म काम मिनं प्रयताः कृतिनो भजतार्य जिनं ।।११।। कनकाद्रिपुरा तुल चैत्य रमा वर भूषण पार्श्व निरस्त तम सकलानिमनोभिगतानिसतां किल पूरय विश्व पते सुकृतां ॥१२॥ इत्थं सुवर्णगिरि मण्डन पार्श्वनाथो भक्तया श्रुतं सभविनां महिमा सनाथ । श्री रत्नधीर सुगुरो रणु भावतस्तु ज्ञानप्रमोद गणिना प्रभुता प्रदोस्तु ॥१३॥ ॥ इति श्री पार्श्वनाथ स्तवनम् ॥ श्री महावीर बोलिका तागुज्जर नारिहि इह संसारिहि मणि हयउ आणंदु । ता तिसलहि नंदणु कम्म विहंडणु वंदह वीर जिणिंदु । ता कणयह कलसू अमियह वरिसू सुमइ मणहर दंडु। ता सहियह दिट्ठइ पाऊ फिट्टइ रोरू जाइ सय खंडु॥१॥ ता वहिल संजोई तुरिय तिचोइ लग्गउ मणि उंमाहु । ता धन्नु नखत्त दिवस सुमुहुत्तू जहि वंदह जिण नाहु॥ ता रिद्धिहि सहिती अंगि नमंती पहुती सं परिवारि । ता कारहि सोहा जण मण मोहा जालउरह मज्झारि ॥२॥ ता पंकय नयणी ससहर वयणी मुहि कुदुज्जल दंत । ता पीण पओहरि सस्स किसोयरि मयगल जिव मल्हंति ॥ ता ऊयटि किज्झहि पड़ि पहिरिज्जहि कंचुय ताडिय नेउ । ता मांकुणि झीणी लाटक वीणी कज्जलि अंगिय नेत्र ॥३॥ ता तिलय करेविणु धड़इ रएविणु मुहि सुगंधु तंबोलु । ता मयमय चंगी नव नव भंगी मंडिय ताइ कपोल ।। ता पाए नेउर वाहा केउर कोटहि नव सरु हारु । ता सोवन चूड़ा पहिरहि रूड़ा वलया झणु हुणकार ॥४॥ ता चंगी वाली पहिरहि पाली कनि कुडल झलिकति । ता कणयइ कंठी रतनिहि खंची वर खिखिणि वज्जति ।। ता भत्तिहि जुत्तौ जिणहरि जंति नयरह हूयउ खोहु । ता तिहिं सिणगारी मन्नोहारी मोहिउ सयलु वि लोउ ॥५॥ [ ९३
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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