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________________ ॥ कलश ॥ इह अकल मूरति सकल सूरति सोवन गिरिवर थापना । गजसिंह राजें तूर वाजें नहिंअ कारिज विजेंदेवराया मुझ सुहाया सेवा करीयें मुहणोत जयमल शिखर चोहड्यो सेवा पापना || पायनी । सफली सामनी ॥ १०॥ पंडित में परधान दिनकर जेंसागर तस नाम लेतां रिदय धरतां पाप न रहे श्री वीर देख्यां पाप नासें अंग एम जंपे देज्यो सगली लावण्यसागर ॥ इति श्री महावीर स्तवन ।। पंडित जती । एका रती ॥ आपदा । नासें संपदा ॥ ११॥ [ पत्र १ अभय जैन ग्रंथालय नं० ११९९० ] कवि पल्हु आदि कृत षट्पदानि से शांतिनाथ वर्णन सो जयउ संतिनाहो, कासव कुल मंडणो कणय वन्नो चालीस पमाणो, जालउरे जयउ संतियरो ॥१॥ ध करउ संति संघस्स संति जुगपवर जिणेसर संति सयल नरेसर अइरा नंदणु लोयल्स संति उदयह देवहि जाइ राइ विससेणह चक्कु लच्छि परिचत्त जयइ जिण पाव विहंडणु कम्मट्ठे करडि घड पंचमुहु भवियलोय भव भय हरण जय जय जयहि जयहि जय संतियर संतिनाहसिवसुह करण ॥ ५ ॥ विक्कमउरि जयसलमेरह संतिनाहु विज्जाउरि बाहडमेरह तित्थेसरु जिण वीरु, पासजिणु सिरिमालि, पढम जिणु वसुपुज्ज सामि काहु चंद पहु पल्हणनयरि सोलसमु चरमु जिणु जालउरि, भविय नमह दिढ चित्तु धरि रिसहेसरु पणमहु चित्तउड़ि जिम न पड़हु संसार सरि ॥ ९ ॥ सुमरहु परमेसरु [ ९१
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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