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________________ लावण्यसागर कृत श्री सोवनगिरि महावीर जिन स्तवन वीर जिणेसर जगि राया, सोवनगिरि ऊपरि में पाया । लोचन दोय अमी लाया, जब साहिब मुझ निजरें आया ॥१॥ खत्रीकुण्ड नयरें जाया, सीधारथ राय रे कुलि आया। त्रिशला नंदन मैं ध्याया, सब इंद्र इंद्राणी मिल गाया ॥२॥ संवत सोल इक्यासी, जयमलजी हीयें विमासीयें । मुहूरत परितिष्ठा वेला, बहु पंडित जन कीधा भेला ॥३॥ संघ सह ने श्रीफल आपी, चैत्री बदि पंचमि दिन थापी। जयसागर पंडित राया, परतिष्ठा करि बहु सुख पाया ॥४॥ जालोर नयर नी पूगी ज रली. तिहां परतिख दीसें सरग पुरी। जालोर नगर नो संघ भावी, पूजो प्रतिमा ऊपरि आवी ॥५॥ सात आठ मिली टोली, श्री वीर भुवन फिरे दोली। मुहणोत जसा नो सुत जीवो, तें कलियुग में थाप्यो दीवो ॥६॥ मेघ तणी परि तु वरसें, सोवनगिरि लिषमी तु खरचे । काने कुडल दोय लाया, जाणे चंद सूरिज सरणे आया ॥७॥ चंद्र आ सखरा लाया, जाणे मुखमल सु मंडप छाया । तुझ गुण जेहणे मन वसीआ, सो नरनारी आ सरणे आया ॥८॥ पापीरा तु मद चूरो, पुण्यंवत नी तु परता पूरें। साहिब सुणि इक वीनति मोरी, भवि भवि देयो सेवा तोरी ॥९॥ ९० ]
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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