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________________ पोलि फूटरी पाटण तणी, चीत्रुडी नइ ढीली तणी। बारी पोलि भलेरउ भाव, कुअर तणउ तलहटी तलाव ॥२८॥ सूदर नाम तलावह जेउ, भोलेलाव कचोली बेउ । पाणी तणी पर्व अपार, सहू को मांडइ सत्कार ।।२९।। जे पहिरइ मुद्रा कांथड़ी, आवद्द जती जोगी कापड़ी। देसंतरि पंषीया भाट, अन्न अवारी पूछइ वाट ॥३०॥ तरुअर छांह परस चउवटे, राउत रमइ जितु जूवटे। नगर नायका रूप अपार, नितु नितु करइ नवा सिणगार ॥३१॥ तास तणा मंदिरि वीसमइ, भोगी पुरुष तेहस्यू रमइ । वावि सरोवर वाडी कूआ, नगर निवेसि ढलइ ढींकूआ ॥३२॥ गढ गिरुउ जिसउ कैलास, पुण्यवंत नउ ऊपरि वास । जिसउ त्रिकूट टांकणे घड़िउ, सपत घात कोसीसे जडिउ ॥३३॥ घणी फारकी विसमा मार, जीणइ ठामि रहइ जूझार । झूझ बाणनी समदावली, विसमा वार वहइ ढींकुली ॥३४॥ गोला यंत्र मगरवी तणा, आगइ गढ ऊपरि छइ घणा । ऊपरि अन्न तणा कोठार, व्यापारीया न जाणू पार ॥३५॥ माणिक मोती सोना सार, गढ मांहि गरथ भरिया भंडार । टांकां वावि भरयां घी तेल, वरस लाष पहुचइ दीवेल ॥३६।। जूनां सालणा सूकां षड, ईधण भणी घणा लाकड़। जालहुर गढ विसंमउ घणउ, चाहूआण राय नू बइसणउ ॥३७॥ यह रचना संवत् १५१२ की है, इसका रचयिता अवश्य ही राजवंश से संबन्धित था जिसने विश्वसनीय ऐतिहासिक तथ्यों पर प्रकाश डाला है। जब गुजरात पर आक्रमण करने अलाउद्दीन की सेना जा रही थी तो वीर कान्हड़दे ने मार्ग देना अस्वीकार कर दिल्ली सल्तनत से शत्रुता मोल ले ली थी पर सोमनाथ और गुजरात को तहस नहस कर वह मारवाड़ की ओर बढ़ी तो सोनगरा चौहान
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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