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बोलिय
सुस्तानजी, रंगाजी, चांखाजी, सूरजमलजी, कान्हजी, अबाषजी, मोतीरामजी, एकलिंगदासजी, भगवानदास जी, ज्ञानमलजी, और लछमीलालजी हुए जिनका थोड़ा सा परिचय हम नीचे देते हैं:
छ जूजी - आप संवत् १४९५ के लगभग चित्तौड़ जाकर महाराणा कुम्भा के पास रहे । महाराणा ने आपका अच्छा सम्मान किया। आपने चित्तौड़गढ़ के ऊपर हवेली, धर्मशाला, और महावीर जी का मन्दिर तथा एक तालाब बंधवाया। इनकी हवेली की जगह इस समय चतुरभुजजी का मन्दिर बना हुआ है।
निहालचन्दजी -- आपने चितौड़गढ़ में महाराणा श्री उदयसिंहजी का प्रधाना किया। संवत् १६१० में आपने श्री महाराणाजी की पधरावनी की थी । उदयसागर की नींव आपही के प्रधाने में लगी ।
जसपालजी -जब कि संवत् १६२४ में चित्तौड़ में साका हुआ उस समय आप तथा आप के भाई बेटे साके में काम करने आये । केवल दो पुत्र बसे जिनमें से बड़े सुक्तानजो संवत् १६३२ में कसबा' पुर' में आकर बसे ।
रंगाजी - आपने महाराणा अमरसिंहजी ( बड़े ) और कर्णसिंहजी के समय में प्रधाना किया । आपने शाहंशाह जहाँगीर के पास जाकर महाराणा अमरसिंहजी की इच्छानुसार चार शर्ते तय कर मेवाड़ में से बादशाही थाणा उठवाया और देश में फिर से अमन अमान स्थापित किया । आपकी सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराणा साहब ने आपको हाथी पालकी का सम्मान बक्षा । साथ ही चार ग्राम की जागीर का पट्टा भी प्रदान किया, जिनके नाम इस प्रकार हैं:-मेवदा काणोली, मानपुरा और जामुण्या | आपने उदयपुर शहर में घूमठावाली हवेली बनवाई जो आपकी इज्जत का एक खास सबूत है - जिसमें इस समय महाराज लक्ष्मनसिंहजी निवास करते हैं। यहां पर रंगाजी का एक शिलालेख का होना भी बतलाया जाता है । इसके अतिरिक्त आपने कसबा 'पुर' में श्री नेमीनाथजी का मन्दिर भी बनवाया, आपके पांच पुत्र हुए- जिनके नाम क्रमशः चोखाजी; रेखाजी, राजूजी, श्यामजी, और पृथ्वीराजजी थे। इनकी शाखाएँ रंगावत कहलाई । रंगाजी के छोटे भाई पचाणजी थे जिनके वंशज पचनावत कहलाते हैं।
चोखाजी - आप मेवाड़ की वकालत पर देहली भेजे गये । आपके शोभाचन्दजी, रायभाणजी, उदयचन्दनी, सूरजमलजी और कर्णजी नामक पांच पुत्र हुए। कर्णजी महाराज गरीबदासजी ( महाराणा सिंहजी के छोटे कुँवर ) की इच्छानुसार श्री हजूर में से उजियारे इन्तजाम के लिये भेजे गये । बे वहीं पर संवत् १७२३ के भाद्रपद मास में स्वर्गवासी हुए । इनके साथ इनकी धर्मपत्नी सती हुई । जिनकी
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