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मोसवाल जाति का इतिहास
: सेठ तिलोकचंदजी के हेमराजजी तथा परशुरामजी नामक २ पुत्र हुए। इन दोनों भाइयों ने कुटुम्ब के व्यापार तथा सम्मान को विशेष बढ़ाया। आप दोनों व्यक्तियों का स्वर्गवास क्रमशः सं० १९३८ और सं० १९५७ में हुआ। सं० १८१२ में सेठ परशुरामजी ने उमराणा में एक विशाल दीक्षा महोत्सव कराया । महाराष्ट्र प्रांत में यह पहला दीक्षा महोत्सव था।
_ सेठ हेमराजजी ओसतवाल के गुलाबचन्दजी तथा धोंडीरामजी नामक २ पुत्र हुए । इनमें गुलाबचन्दजी के पुत्र बालचन्दजी तथा शेषमलजी हुए। इनमें शेषमलजी परशुरामजी के नाम पर दत्तक गये । - सेठ धोंडीरामजी का जन्म संवत् ११३२ में हुमा । नाशिक जिले की ओसवाल जाति में भाप नामी धनवान हैं। आप समझदार और पुराने ढंग के पुरुष हैं। आप स्थानकवासी आम्नाय को मानने वाले हैं। आपके पुत्र शंकरलालजी तथा रतनलालजी हैं। आपके धोंडीराम हेमराज के नाम से तथा शेषमलजी के शेषमल परशुराम के नाम से साहुकारी का व्यापार होता है।
कोलिया
बोलिया गौत्र की उत्पत्ति
ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन समय में मारवाड़ में 'अप' नामी एक नगर था जिसका अनुमान वर्तमान में नागोर के पास लगाया जाता है। वहाँ एक समय चौहान वंशीय राजा सगर राज्य करते थे। इनके पुत्र कुँवर नरदेवजी को विक्रमी संवत् १९ में भहारकजी श्रीकनकसूरि महाराज ने जैन धर्म का उपदेश देकर जैन धर्मावलम्बी भोसवाल बनाया। महाराज का यह उपदेश 'बूली' नामक प्राम में होने से इस खानदान वालों का गौत्र दूलिया या बोलिया कहलाया।
मोतीरामजी बोलिया का खानदान, उदयपुर इनके वंशज बहुत समय तक देहली और रणथम्भोर नामक स्थानों में रहे । यहाँ इन्होंने कई नामी काम करके प्रतिष्ठा प्राप्त की। पंद्रहवीं शताब्दी में इस वंश की ३३ वी पीढ़ी में टोडरमलजी हुए। आपने रणथम्भोर में प्रसिद्ध गणपति का मन्दिर बनवाया। आपकी वृत्ति धार्मिक कार्यों को
ओर विशेष रही। आपने अपने समय में काफी दान पुण्य भी किया। भापके पुत्र बाबूजी .. एणथंभोर से चित्तौड़ भाये। इन्ही छाजूजी के वंश में यह खानदान है। .. .
छाजूजी के पश्चात् इस वंश में क्रमशः खेतानी, पाजी, निहालचंदजी, जसपालजी,