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प्रोसबाट जाति का इतिहास
छत्री व शिलालेख उणियारे में सप्पन जो के तालाब के पास मौजूद है। चोखाजी के भाई राजूजी के वंश में रुद्रमाणजी और सरदारसिंहजी हुए जिन्होंने अपने समय में फौज मुसाहिबी की।
अनोपजी-आपका जन्म संवत् 100 कार्तिक मास में हुआ। महाराणा श्री संग्रामसिंहजी (द्वितीय) ने आपको और धाभाई देवजी को सरकारी काम के लिये देहली भेजे। आपने राज के कोठार का काम किया। इसके पश्चात् कपासन वगैरह कई परगनों पर आप हाकिम रहे। संवत् १९०६ में आपके पुत्र मोतीरामजी के विवाह में महाराणा की आपके घर पधरावणी हुई। आपने कपासन प्रान्त में अपने नाम से अनोपपुरा नामक ग्राम बसाया । इस गांव में भापने वावड़ी और तालाब बंधवाया । साथ ही पोटला का तालाब भी आप ही ने बंधवाया । कसबा 'पुर' में आपने अपने पूर्वजों द्वारा निर्मित श्री नेमीनाथजी के मन्दिर का जीर्णोद्धार करवा कर एक नया सभा मंडप बनवाया, तथा दूसरी मूर्ति स्थापन करवा कर उसकी प्रतिष्ठा करवाई। आपने वहाँ बाग बावड़ी और ममलेश्वरजी का एक मन्दिर बनवापा । भापकी हवेली 'पुर' में महलों के नाम से मशहूर है
और आज भी होली दिवाली पर पंच दस्तूर के लिए आते हैं। आपकी जागीर में रंगाजी की जागीर के दो गाँव मेवदा और काणोंली रहे । आपके मोतीरामजी, मोजीरामजी एवम् मानसिंहजी नामक तीन पुत्र हुए।
मोतीरामजी-आपका जन्म सम्बत् १७०३ की श्रावण सुदी २ को हुआ। आपने सम्वत् १८१९ से १०२५ तक महाराणा श्री अरिसिंहजी को प्रधानगी की। इस अवधि में एक बार संवत् १८२१ के जीव प्रधाने का काम दूसरे व्यक्ति को दिया गया था। मगर सुचारु रूप से कार्य न चलने के कारण कुछ ही दिनों पश्चात् वापस आपको ही दिया गया। संवत् १.२६ में जबकि सिंधिया के साथ वाली सन्धि में बड़वा अमरचन्दजी ने इनकी इच्छा के खिलाफ तप की, इस शर्तनामें के अनुसार सरकार का बुकसान समझ कर बापने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और बाहर चले गये। भेड़े ही समय पश्चात महाराणा में इसकी असलियत का हाल मालूम हुआ तो ये वापस बुलवाये गये। मगर ये हाजिर न हो सके और उसी समय संवत् १९२८ में आपका स्वर्गवास हो गया। आपके स्वर्गवासी हो जाने के पश्चात् भी महाराणा साहब ने आपके पुत्र एकलिंगदासजी को श्यामधर्मी होने वगैरह के कई परवाने बो जिससे मालम होता है कि महाराणा का भाप पर पूरा भरोसा था। मोतीरामजी की जागीर में चार गाँव मेवदा, मानपुरा, काणोली और सादड़ा थे। आपके एकलिंगदासजी और अचलदासजी नामक दो पुत्र हैं।
___ उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त आपके द्वारा कई धार्मिक कार्य भी हुए । आपये कसारों की ओल में एक श्री ऋषभदेवजी महाराज का मंदिर तथा उपाश्रय बनवाया और उसकी प्रतिष्ठा संवत १८२० में करवाई।