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रतनपुरा कटारिया
रतनपुरा कटारिया गौत्र की उत्पत्ति
विक्रम संवत् १०११ में सोनगरा चौहान जातीय रतनसिंहजी नामक एक प्रसिद्ध राजपूत हो गये हैं। आपने अपने नाम से रतनपुर नामक नगर बसाया । आपकी पांचवीं पीढ़ी में धनपालथी नाम के एक नामांकित राजा हुए। सुप्रसिद्ध जैनाचार्य दादा जिनदत्तसूरि के द्वारा राजा धनपाल ने जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण की तथा श्रावक के बारह गुण सुनकर अंगीकार किये । तभी से भापके वंशज अपने पूर्वज रखनसिंहजी के नाम से रतनपुरा कहलाने लगे।
इन्हीं रतनसिंहजी के वंश में भागे जाकर झाक्षणजी नामक एक प्रतापी और बुद्धिमान पुरुष हो गये हैं। भापकी वीरता से प्रसव होकर मांडलगढ़ के बादशाह ने भापको भले मोहदे पर मुकर्रर किया था। भापका धार्मिक प्रेम बहुत बड़ा चदा था। आपने भ→जय का बड़ा भारी संघ भी निकाला था। कहते हैं कि इस संघ के शबूंजय पहुंचने पर भारती की बोली पर शाह अवीरचन्द नामक एक नामी साहुकार के साथ भापकी प्रतिस्पर्धा हो गई। यह बोली बढ़ते । हजारों लाखों रुपयों तक पहुंची और अंत में झामणजी ने मालवा प्रदेश की ९१ लाख की आमदनी की बोली इस पर लगाकर प्रभु की भारती उतारी । भापके दूसरे भाई पेथड़शाह ने शत्रुजय, गिरनार पर मजा चदाई तथा अन्य कई धर्म के कार्य किये । इसके पश्चात् किसी के चुगली लगने पर एक समय बादशाह क्षणजी पर प्रसन्न हुआ और इन्हें पकड़वा मंगाने के लिए एक सेना भेजी और फिर माप भी गये। हाँक्षणसिंहजी के हाथ में कटार देखकर उन्हें कटारिया नाम से सम्बोधित करते हुए, खजाने से कितने रुपये पुराये इसके विषय में पूछा । सांझणसिंहजी ने कहा कि हुजूर मैं एक पैसा भी बेहरू का खाना हराम समझता हूँ। हाँ, हुजूर के जगजाहिर नाम को खुदा तक “मैंने अवश्य पहुँचाया है।" इस उत्तर से प्रसन्न होकर बादशाहने आपके सब गुन्हाभों को माफ कर भापको दरबार में कटारी रखने का सम्मान इनायत किया । तभी से कटारी रखने के कारण मापन कटारिया कहलाये।
आपके पश्चात् जावसी कटारिया के समय मुसल्मानों ने सब कटारियों को मारवाद में कैद र २२०००) दण्ड किये। ये रुपये भट्टारक गछ के अति जगरूपजी ने अपनी बुद्धिमानी से छुड़वाये । नापसीजी के पश्चात् भापके वंश में महता लाखनबी नामक प्रसिदम्पति हुए। मापने एक बहुत बड़ा