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________________ रतनपुरा-कटारिया शत्रुजय का संघ निकाला और हजारों रुपये के खर्चे से एक स्वामिवरसल किया। मापने वंशज लाखनसीजी मे एक लाख २१ हजार की लागत के महेन्द्रपुर के पास एक सुन्दर धर्मशाला तथा बावड़ी बनवाई। मेहता भोपालसिंहजी का खानदान मेहता कुंपाजी के वंशज-मेहता सोमाजी के पश्चात् सलखाजी संवत् १९५० के लगभग उदव. पुर में आये । आपके दो पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः हरचंदजी और ताणाजी था। इनमें से हरचंदजी के वंश में देवराजजी हुए । देवराजजी के पुत्र का नाम बछराजजी था। मेहता बछराजजी के तीन पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः शेरसिंहजी सवाईरामजी एवम् गुमानजी था। इनमें से शेरसिंहजी और सवाई. रामजी महाराणा भीमसिंहजी के प्रतिष्ठित कर्मचारी रहे । भापकी सेवाओं से प्रसन्न होकर संवत् १४.५ में महाराणा ने भाप तीनों भाइयों को अलग २ कुछ गाँव जागीर में दिये। इसके कुछ समय पाचार मेहता शेरसिंहजी ने इंवर जवानसिंहजी के वरपदे का काम किया। इससे प्रसन्न होकर महाराणा ने आपको पालकी की इजत बक्षी। मेहता शेरसिंहजी के स्वर्गवासी हो जाने के पाचात् मापके छोटे भाई मेहता सवाईरामजी आपके स्थान पर नियुक्त हुए और कुछ समय पाच वरपदे के प्रधान हो गये। . मेहता शेरसिंहजी का परिवार-मेहता शेरसिंहजी के पुत्र गणेशदासजी भी राज कार्य करते रहे। आपके पश्चात् आपके पुत्र मेहता बस्तावरसिंहजी मेवाड़ के जिलों के हाकिम रहे। मेहता गोविन्दसिंहजी-मेहता बख्तावरसिंहजी के पुत्र गोविन्दसिंहजी भी मेवाड़ के जिले में हाकिम रहे । आप बड़े साहसी और प्रबन्ध कुशल व्यक्ति थे। मगरा जिले में जब वहाँ के भीलों ने उपद्रव किया तब महाराणा सजनसिंहजी ने आपको इस काम के योग्य समझ वहाँ का हाकिम नियुक्त कर भेजा। भील जाति बेसमझ, जंगली, लड़ाकू, जरायमपेशा और गोमांस भक्षी जाति थी। भापका उसके साथ ऐसा वर्ताव रहा कि जिससे वह आप पर विश्वास भी करती थी और बरती भी थी। आपके वहाँ रहने से सब उपद्रव शांत हो गये। साथ ही यहां की भील जाति ने आपके उपदेशों एवम् प्रभाव से गोमांस खाना बंद कर दिया। इसके पश्चात् संवत् १९३९ में भोराई के भील लोगों ने उपद्रव मचाया। इस उपद्रव को शान्त करने के लिए फौज के तत्कालीन अफसर महाराजा अमानसिंहजी फौज लेकर वहाँ भेजे गये । उस समय भी वहाँ के हाकिम गोविन्दसिंहजी ने अमानसिंहजी के कार्य में बहुत सहायता देकर उपद्रव को शांत करवाया । इससे प्रसन्न होकर महाराणा ने आपको (गोविन्दसिंहजी) कंठी और सिरोपाव प्रदान किया। इसी सिलसिले में गवर्नमेंट हिन्द (भारत सरकार) ने भी आपके कार्य की बहुत प्रशंसा की और मेवाड़ के तत्कालीन रेजिडेण्ट लेफ्टिनेन्ट कर्नल सी० बी० इयून स्मिथ सी. एस. आई. ने एक बहुत
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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