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बोसवाल जाति का इतिहास
लालचन्दजी का अन्तकाल हो गया है। तथा सुराणा धनराजजी इस समय सुमेरपुर जोनिंग फेन्टरी का काम देखते हैं। भापकी वय ३१ साल की है।
सुराणा सुकनराजजी का जन्म 'वत् १९६१ में हुमा सन् १९२४ में आपने सोजत में मेक्टिस शुरू की। सन् १९१७ में आप सिरोही आ गये। यहाँ सरूप नगर के लिये आप भानरेरी मजिस्ट्रेट बनाये गये। इधर ४ सालों से आप सिरोही में वकालात करते हैं। भाप सिरोही के वकीलों में अच्छा स्थान रखते हैं और आप कानून की अच्छी जानकारी रखते हैं और उग्र बुद्धि के युवक हैं।
सुराणा हीरालालजी, सोजत हम ऊपर लिख आये हैं कि सुराणा निहालचन्दजी के छोटे भ्राता खींवराजजी और मोतीरामजी थे, उन्हीं से इस परिवार का सम्बन्ध है। सुराणा मोतीरामजी ने जोधपुर दरबार से जीव हिंसा रुकवाने के कई परवाने हासिल किये। आप बड़े वीर और बहादुर प्रकृति के पुरुष थे। इनके पुत्र साहबचन्दजी संवत् १८६० में सोजत के कोतवाल थे। इनके बाद तेजराजजी और जसवन्तराजजी हुए। जसवन्तराजजी के चार पुत्र हुए। इनमें पन्नालालजी गुजर गये हैं, बलवन्तराजजी कलकत्ते में जवाहरात का तथा सुकनराजजी दारव्हा में रूई का व्यापार करते हैं। सबसे बड़े सुराना हीरालालजी सोजत में रहते हैं।
सुराणा हीरालालजी बड़े हिम्मतवर, समाज सेवी और ठोस काम करने वाले व्यक्ति हैं। संवत् १९३० में भापका जन्म हुआ। साल तक आपने जोधपुर में वकालात की। इसके बाद मापने मारवाड़ की जैन डायरेक्टरी तयार करने में बहुत परिश्रम किया। फिर श्वेताम्बर जैन कान्फ्रेन्स की ओर से मारवाड़ के जैन मंदिरों की जांच व दुरुस्ती का कार्य उठाया। जब जोधपुर महाराजा उम्मेदसिंहजी सन् १९२५ में विलायत से वापस आये, उस समय आपने मारवाड़ की जनता की ओर से ५ हजार
रुपया खरच कर दरबार को एक किताब नुमा मानपत्र भेंट किया, जिसमें चांदी के १६०० अक्षर थे । .. जब पालीताना दरवार से शQजय का झगड़ा हुआ, उसका भारत भर में प्रोपेगंडा करने का भार ६ व्यकियों
को दिया. उसमें । आप भी थे। मारवाद से गाय. फी मेल शिपस तथा सी० गडस बाहर न जाने देने लिये मापने जबर्दस्त प्रयत्न उठाया, लेकिन जब जोधपुर दरबार ने सुनवाई नहीं की, तो सुराणा हीरालालजी ने दरबार के बंगले पर : दिन तक अनशन सत्याग्रह किया। इस समय आपके पास हर समय २ हजार भादमी बने रहते थे। अन्ततः दरबार से उपरोक्त पशु बाहर न जाने देने की परवानगी हासिल हुई। इसी तरह सिरोही स्टेट से भी पयूषण पर्व में जीवहिंसा न होने का हुकुम प्राप्त किया। कहने का तात्पर्य यह कि सुराणा हीरालालजी की पब्लिक स्प्रिट प्रशंसनीय और अनुकरणीय है।