SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 761
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुराणा सेठ माणकचन्द शेरमल सुराणा, नागपुर इस परिवार का मूल निवास अलाय (नागोर) नामक ग्राम है। वहाँ से सेठ माणकचन्दजी सुराणा लगभग १०० साल पहिले व्यापार के निमित्तं नागपुर आये, और यहाँ आकर सदर (छावनी) में सराफी और गल्ले का धंधा प्रारम्भ किया आपके पुत्र सुराणा शेरमलजी थे । शेरमलजी सुराणा - आपने इस फर्म की विशेष तरक्की की । आप बड़े बुद्धिमान और दूरदर्शी पुरुष थे। आपका नाम सी० पी० तथा बरार के लोकप्रिय और सार्वजनिक कामों में भाग लेने वाले सज्जनों में गिना जाता था । आपका सम्वत् १९६६ में स्वर्गवास हुआ। आपके रामचन्दजी, रतनचन्दजी, लखमीचन्दजी, मोतीलालजी, सूरजमलजी चांदमलजी और ताराचन्दजी नामक ७ पुत्र हुए। इन बन्धुओं में इस समय सुराणा मोतीलालजी, सूरजमलजी तथा ताराचन्दजी विद्यमान हैं । ताराचन्दजी सुराणा - भापका जन्म सम्वत् १९५४ में हुआ । आप धार्मिक और सुधरे विचारों के समाज सेवी सज्जन है । सन् १९२७ में सी० पी० बरार ओसवाल सम्मेलन के समय भाप स्वागताध्यक्ष थे । आप श्वेताम्बर जैन समाज के तीनों आम्नाय के शास्त्रों की अच्छी जानकारी रखते हैं । इस समय आप मृतक भोज प्रति-बन्धक संस्था के प्रेसिडेण्ट हैं । आपके बड़े भ्राता सेठ मोतीकालजी तथा सूरजमलजी सज्जन व्यक्ति हैं । तथा फर्म का व्यवसाय संचालित करते हैं। नागपुर तथा यवतमाल जिले के ओसवाल समाज में आपके परिवार का अच्छा सम्मान है । सेठ मोतीलालजी सुराणा के दो पुत्र हुए । पन्नालालजी और सिद्धकरणजी । पन्नालालजी का १५ वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो चुका है। सूरजमलजी के तीन पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः शेंशकरणजी, शुभकरणजी प्रेमकरणजी हैं । शेसकरणजी बड़े उत्साही और समाज सेवी सज्जन हैं। ओसवाल समाज की उन्नति के लिए आपके हृदय में बड़ी आकांक्षा रहती है। नागपुर के सभी ओसवाल सभा सोसाइटियों में आप बड़े उत्साह से भाग लेते हैं। शुभकरणजी यवतमाल दुकान पर काम करते हैं, आप बड़े उत्साही युवक हैं। तीसरे प्रेमकरणजी इण्टर में पढ़ रहे हैं। ताराचन्दजी के दो पुत्र हैं- हेमकरणजी तथा चेनकरणजी। इनमें हेमकरणजी नागपुर दुकान पर काम करते हैं । इस फर्म की एक शाखा शेरमक सूरजमल के नाम से यवतमाल में भी है। इन दोनों स्थानों पर यह दुकान बहुत प्रतिडित मानी जाती है। दुकानों पर सोना चांदी और बैकिंग का व्यवसाय होता है । इन दोनों रिणी का सुराणा परिवार बसे । इस परिवार के लोग सांतू नामक स्थान पर रहते थे। वहां से १०० वर्ष पूर्व रिणी में आकर भाप जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सम्प्रदाय के अनुयायी हैं । इस खानदान में मथमलजी हुए . २८९ ७७
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy