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________________ मुरायो एरनपुरा, भावू और मजमेर के खजाने पर मुकरर होते गये। इसके बाद आपने १२. साल तक साहुकारो नौकरी की और अंत में धार्मिक जीवन विताते हुए स्वर्गवासी हुए। सुराना पनराजजी-आप छोगमलजी के पुत्र हैं। भापका जन्म संवत् १९२५ में हुमा। १५ साल की वय में आपने कपड़े का व्यापार शुरू किया । यहाँ भापको चौधरी का भी सम्मान मिला। इसके बाद आरके जीवन का विशाल क्रान्ति युग आरम्भ हुआ। भापको अपनी कर्तव्य शक्ति के दिखलाने का पूरा भवसर मिला। सम्बत् १९५६ में सिरोही स्टेट ने अपनी प्रजा पर ३॥ भारी टेक्स लगाये, संवत् १९६० में उसका विरोध जनता ने आपके नेतृत्व में उठाया। आपने कई गण्यमान्य व्यक्तियों के साथ सिरोही जाकर टेक्स माफ करवाने की कोशिश की। लेकिन रियासत ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया, तब मापने गुप्त रूप से जोधपुर दरबार से उनकी हद में शिवगंज के समीप एक बस्ती आबाद करने का परवाना हासिल किया और वहाँ शिवगंज के सैकड़ो कुटुम्बों को लेजाकर भावाद किया। जोधपुर स्टेट ने आपका सम्मान कर आपको “नगर सेठ" की पदवी, सिरोपाव, कड़ा, कन्डी, दुशाला और मंदिल इनायत किया। साथ ही आषाद होने वाली जनता को ३३ कलमों की छूट दी । जब यह समाचार सिरोही दरबार ने सुना तो अपनी प्रजाके सब टेक्स माफ कर दिये । जिससे बहुत से कुटुम्ब वापस शिवगंज चले गये । आपने सुमेरपुर में सर्वहित कारिणी सभा स्थापित की । जैन मन्दिर, गणेश व महादेव का मन्दिर, धर्मशाला, मस्जिद, प्रतापसागर नामक कूप आदि स्थान बनवाये। इसी बीच सन् १९१४ में यूरोपियन वार छिड़ा, उस समय इस स्थान की भाब हवा उत्तम समझ कर ए० जी० जी० अजमेर ने जोधपुर दरबार से सुमेरपुर नामक बस्ती, तुर्की कैदियों को रखने के लिए मांगी। तथा जोधपुर के मुसाहिब, ए० जी० जी०, भादि ने यहाँ के निवासियों को समझाया और यह बस्ती खाली कराई । तथा यहाँ तुर्की कैदी आबाद किये गये । सुमेरपुर खाली करते ही पनराजजी सुराणा ने उसके समीप ही ऊंदरी नामक गाँव आवाद किया, और वहाँ अपनी एक जीनिंग फेक्टरी खोली। सम्वत् १९७२ में आपके मसले पुत्र धनराजजी को उनके विवाह के समय जोधपुर स्टेट से पालकी सिरोपाव इनायत हुआ। युद्ध शांत होने के बाद ऊंदरी तथा सुमेरपुर के राज्य कर्मचारियों से आपकी अनबन हो गई। उसी समय सिरोही दरबार ने आपको सिरोही स्टेट में बुलवाया। अतः आपने सम्वत् १९८३ में सिरोही के समीप "नया बाजार" नामक बस्ती मावाद की। आपकी तर्क शक्ति और याददाश्त अच्छी है। सोजत में “शुभखाता दुकान और भगवानजी पुरुषोत्तम" नामक फर्म के स्थापन में आपने प्रधान योग दिया था। इसी प्रकार उम्मेद कन्याशाला के स्थापन में और सम्वत् १९७६ में मुसलमानों के झगड़े को निपटाने में भी मापने काफी परिश्रम उठाया था। सेठ पनराजी सुराणा के लालचन्दजी, धनराजजी तथा सुकनराजजी नामक तीन पुत्र हुए। इनमें २८५
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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