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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास कोठारी हाकिम और शाह कोठारी चौपड़ा गौत्र की उत्पत्ति का वर्णन करते समय हम ऊपर लिख आये हैं कि ठाकुरसीजी के पश्चात् इस खानदान के कुछ लोग बीकानेर की ओर चले गये। उनमें कोठारी चौथमलजी भी थे । आप राव बीकाजी के, जब कि वे नवीन राज्य की स्थापना के लिए जांगलू प्रान्त में गये थे, साथ थे । इनके सूरजमलजी नामक पुत्र हुए। सूरजमलजी के सात पुत्र हुए। जिनमें से पृथ्वीराजजी को तत्कालीन बीकानेर नरेश ने अपने राज्य में हाकिमी का पद प्रदान किया। तबही से पृथ्वीराजजी के वंशज हाकिम कोठारी कहलाते हैं। शेष छहों भाइयों की संतानें साहूकारी का काम करने के कारण शाह कोठारी कहलाती हैं । सेठ रावतमल भैरोंदान कोठारी (हाकिम) बीकानेर हाकिम कोठारी पृथ्वीराजजी के जीवनदासजी और जगजीवनदासजी नामक दो पुत्र हुए। आप कोण आजन्म रियासत बीकानेर में हाकिमी का काम करते रहे। इनमें जगजीवनदासजी के करमसिंहजी और खींवसीजी नामक दो पुत्र हुए। आप दोनों भाई भी हाकिमी का काम करते रहे । यह परिवार करमसीजी का है । करमसीजी के पश्चात् उनके पुत्र सुल्तानसिंहजी और सुल्तान जिंहजी के पुत्र मदनसिंहजी हाकिम रहे। मदनसिंहजी के पुत्र रेखचंदजी को सरकारी नौकरी से अरुचि होगई । अतएव आपने सरकारी - मौकरी करना छोड़ दिया और सरकार से साहुकारी का पट्टा हासिल किया । इनके अमोलकचन्दजी और रावतमलजी नामक दो पुत्र हुए। सेठ रावतमकजी ने दोहद नामक स्थान पर साधारण कपड़े का व्यापार प्रारम्भ किया था | आपका स्वर्गवास हो गया है। आपके भैरोंदानजी नामक एक पुत्र हैं । अहम सेठ भैरोंदानजी का जन्म संवत् १९३८ में दोहद नामक स्थान में हुआ। संवत् १९५५ में आप कक्षकता गये और वहाँ १०) मासिक पर नौकरी की । आप बड़े प्रतिमा सम्पन्न, और व्यापार चतुर हैं । आपने शीघ्र ही नौकरी को छोड़ दिया और वहीं विलायती कपड़े को बेचने के लिये मेसर्स रावतमल भैरोंदान के नाम से फर्म स्थापित की । जब इसमें आप असफल रहे तब आपने अपनी फर्म पर स्वदेशी कपड़े का व्यापार करना प्रारम्भ किया। इसमें आपके योग्य संचालन से आशातीत सफलता हुई । आपने लाखों रुपयों की सम्पत्ति उपार्जित की। इतना ही नहीं वरन् उसका सदुपयोग भी किया। आपका ध्यान हमेशा धार्मिक एवं सामाजिक बातों की ओर भी रहता है। आपकी धर्मपत्नी के नवपद ओली के तप के उद्यापन में आपने करीब ५० हजार रुपया खर्च किया । एक सुन्दर चाँदी और सोने का सिंहासन बनाकर २६
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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