SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 657
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कोठारी चौपड़ा श्री चिन्तामणिजी के मंदिर को भेंट किया । आपने बीकानेर की श्री जैन पाठशाला को ५१००), कलकत्ता श्वेताम्बर मित्र मंडल को ३१००), पूना भंडारकर पुस्तकालय को १०००), इसी प्रकार और भी कई संस्थाओं को सहायता पहुँचाई है । आपका विद्या की ओर भी अच्छा ध्यान है । आपने जैन साहित्य के प्रकाशनार्थ पं० काशीप्रसादजी जैन को ५ हजार रुपया प्रदान किया है। इसी प्रकार आप समय २ परगुप्तदान -- भी करते रहते हैं । आपके यहाँ से बहुतसी अनाथ विधवाओं को सहायता पहुंचाई जाती है। लिखने का मतलब यह है कि आप उदार और दानी सज्जन है। आपका स्वभाव मिलनसार है। आपको देशी कारीगरी का बेहद शौक है । आपने अपने यहाँ कई चाँदी सोने की कलामय वस्तुओं का बहुमूल्य संग्रह कर रक्खा: । आपका मकान एक दर्शनीय मकान है। आपके यहाँ एक देशी किंवाड़ जोड़ी को करीब २ साल से इसी प्रकार आपके मकान २ कारीगर बना रहे हैं। इस किंवाड़ जोड़ी की कारीगरी देखते ही बनती है । की छतों एवं दीवालों पर का सुनहरी काम तथा चित्रकारी दर्शनीय है। नं. १०० क्रास स्ट्रीट में होता है । आपका व्यापार कलकत्ता में सेठ जतनमल मानमल कोठारी (शाह) बीकानेर .. यह हम ऊपर लिख चुके हैं कि सूरजमलजी कोठारी के पुत्र थे। जिनमें से पृथ्वीराजजी के वंशज हाकिम कोठारी कहलाते हैं और शेष भ्राताओं का परिवार शाह कोठारी कहलाता है। यह परिवार भी शाह कोठारी है। इस परिवार का पुराना इतिहास बड़ा गौरव-पूर्ण है । इस परिवार में ऐसे २ व्यापार कुशल व्यक्ति हो गये हैं, जिन्होंने अपनी अपूर्व व्यापार-चातुरी और अद्भुत प्रतिभा के बलपर तत्कालीन व्यापारिक फर्मों में अपनी फर्म का एक खास स्थान बना रक्खा था। इस परिवार के पुरुषों की फर्मों का हेड आफिस बीकानेर ही था। करीब ३०० वर्ष पूर्व इस परिवार की फर्म आमेर में थी । वहाँ उस समय गुमानसिंह दानसिंह नाम पड़ता था। इसके बाद जबकि जयपुर बसा तब यह फर्म भी वहाँ से जयपुर लाई गई। इसी प्रकार इस परिवार की उस समय इन्दौर, पूना, गवालियर, उदयपुर, अमरावती आदि प्रसिद्ध २ व्यापारिक केन्द्रों में फर्मे खुली हुई थीं । जब बम्बई पोर्ट कायम हुआ तब इस परिवार की पूना वाली फर्म बम्बई लाई गई । इन्दौर वाली फर्म से स्टेट को काफी आर्थिक सहायता दी गई थी। इसके प्रमाण स्वरूप इस परिवार वालों के पास खास रुक्के मौजूद हैं। बीकानेर दरवार ने भी समय २ पर इस परिवार वालों को साहुकारी के खास रुक्के प्रदान कर सम्मानित किया है। उदयपुर और गवालियर रियासत से भी कई रुक्के प्राप्त हुए हैं। लिखने का मतलब यह है कि इस परिवार का व्यापारिक इतिहास प्राचीन और गौरव मय स्थिति में रहा है । २२७
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy