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श्रीसवाल जाति का इतिहास
मलजी, जेठमलजी तथा अमानमलजी नामक तीन पुत्र हुए। करीब साठ पैंसठ वर्ष पूर्व सेठ रावतमलजी नागौर से पैदल रास्ते द्वारा मद्रास भावे और सेंट थामस माउण्ट में अपनी दुकान स्थापित की । आप बड़े धार्मिक और साहसी व्यक्ति थे । आपके हाथों से फर्म की तरक्की हुई। आप संवत् १९७७ में अस्सी वर्ष की आयु में गुजरे । आपके सूरजमलजी नामक एक पुत्र हुए। सेठ: सूरजमलजी का जन्म संवत् १९३४ में हुआ। आप भी व्यापार में बड़े होशियार थे । आपने अपनी फर्म की खूब वृद्धि की । आप संवत् १९७१ में स्वर्गवासी हुए। आपके निःसंतान गुजरने पर • आपके नाम पर सेठ अमानमलजी के तीसरे पुत्र सेठ शम्भूमलजी गोद आये ।
सेठ शम्भूमहजी का जन्म सम्वत् १९४९ में हुआ। आप शांत प्रकृति के धार्मिक पुरुष हैं। आपकी ओर से गरीबों को सदाबत दिया जाता है। आपके मांगीलालजी नामक एक पुत्र है ।
सेठ गुलाबचन्दजी वेद, जौहरी जयपुर
उदयपुर स्टेट के खंडेला नामक स्थान से खेठ चुनीलालजी वेद जयपुर आये । आपके पुत्र गुलाबचन्दजी कलकत्ता गये । आप विलायत से पद्मा मंगाकर भारत में बेचते तथा यहाँ से विलायत के लिए जवाहरात भेजते थे । इस व्यापार में आपने अच्छी इज्जत और सम्पत्ति उपार्जित की । तदनंतर आपने कलकत्ते में दो विशाल कोठियाँ खरीदीं। संवत् १९५८ में आप स्वर्गवासी हुए। वेद गुलाबचन्दजी के मिलाप चन्दजी तथा पूनमचन्दजी नामक २ पुत्र हुए। जौहरी पूनमचन्दजी ने जयपुर में दो बगीचे बाजार में दुकानें तथा हवेलियाँ खरीद कर अपने कुटुम्ब की स्थाई सम्पत्ति को बढ़ाया। जयपुर महाराजा माधौसिंहजी की इन पर कृपा थी । इन्हें राज्य की ओर से लवाजमा और राज दरबार में जाने के लिये चोबदारों का सम्मान प्राप्त था। मिलापचन्दजी का स्वर्गवास संवत् १९५८ में तथा पूनमचन्दजी का संवत् १९८० में हुआ ।
जौहरी पूनमचन्दजी के पुत्र चम्पालालजी का जन्म सम्वत् १९६२ में हुआ । आपके यहाँ जन्महरात का व्यापार और स्थाई सम्पत्ति के किराये का कार्य्य होता है । कलकरो में आपकी फर्म पर बैंकिंग तथा किराये का काम होता है। यह परिवार जयपुर की जौहरी समाज में प्रतिष्ठित माना जाता है ।
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