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भण्डारी रण कुशल थे। आप जोधपुर के हाकिम थे। आपने नागोर पर चढ़ाई कर वहाँ किस प्रकार अपना अधिकार किया इसका वर्णन हम "ओसवालों के राजनैतिक महत्व" नामक अध्याय में कर चुके हैं।
सम्बत २०१७ में महाराजा अजितसिंहजी ने आपको फौज देकर अहमदाबाद भेजा । वहाँ जाकर आपने उक्त नगर पर अधिकार कर लिया। फिर भंडारी रत्नसिंहजी को वहाँ का शासन भार सौंप कर भाप लौट आये।
सम्बत १७०२ के माघ मास में जब महाराजा अभयसिंहजी दिल्ली पधारे तब मारवाड़ का शासन भार राजाधिरान बख्तसिंहजी पर रखा गया और भंडारी अनोपसिंहनी उनके सहायक बनाये गये ।
सम्बत १७८५ में आनन्दसिंह रायसिंह ने जालौर के गाँवों पर हमला किया, तब उनके मुका. बिले में भंडारी अनोपसिंह ससैन्य भेजे गये। आपके पहुंचते ही दोनों बागी सरदार भाग खड़े हुए । दरवार के हुक्म से आपने पोकरण पर चढ़ाई कर उस पर अधिकार कर लिया।
भण्डारी केसरीसिंहजी भाप भंडारी अनोपसिंहजी के ज्येष्ठ पुत्र थे। जान पड़ता है कि भंडारी भनोपसिंहजी के और भी पुत्र थे, जिनमें माणिकचंद्रजी का नाम हमने पुष्कर के पते की यही में देखा । पर उनके अन्य पुत्रों का हाल उपलब्ध नहीं है।
भंडारी केसरीसिंहनी का समय दीपावत भंडारियों की अवनति का था। इस समय अर्थात् सम्बत १७४० के लगभग भंडारी खींवसीजी के वंशज और केसरीसिंहजी कैद किये हुये थे। भंडारियों की ख्यात में केसरीसिंहजी के कैद होने और उन्हें सरदारों के सिपूर्द होने मात्र का उल्लेख है। जान पड़ता है कि इनके समय में राज्य द्वारा भंडारी रघुनाथजी की हवेली और जायदाद जप्त करली गई और ये बड़ी मुसोबत की हालत में जैतारण चले गये। इनके दो पुत्र थे, जिनमें पहले पुत्र अखेचन्दजी जैतारण रहे और दूसरे मेड़ते तथा बीलाड़े रहे। भंडारी केसरीसिंहजी का सम्बत १८५५ के लगभग जैतारण में देहान्त हुआ। उनकी पत्नी उनके साथ सती हुई जिसका चौंतरा बना हुआ है । भंडारी अखेचन्दजी के फौजराजजी और जवाहरमलजी नामक दो पुत्र हुए। फोजराजजी के मुलतानमलजी और गम्भीरमलजी नामक दो पुत्र थे। मुलतानमलजी बड़ी वीर प्रकृति के थे। सम्बत १९१४ के विद्रोह में आप अंग्रेजी सेना में भर्ती हुए और थोड़े ही दिनों में अंग्रेजी भारतीय फौज में अफसर हो गये । आपको अंग्रेजी सेनापतियों से अच्छे अच्छे प्रशंसापत्र मिले थे। मुलतानमलजी और गम्भीरमलजी निःसन्तान गुजरे ।
जवाहरमलजी के शिवनाथचंदजी नामक पुत्र हुए। आप न्यापार करने के लिए केतुली (मालवा) गये थे। वहाँ सम्बत १९२५ में पच्चीस वर्ष की अवस्था में आपका देहान्त हुआ। आपके पुत्र भण्डारी जसराजजी हुए।