________________
बोसवाब जाति का इतिहास
भण्डारी जसराजजी-आपका जन्म सम्वत १९१६ में हुआ। अपने पिताजी की मृत्यु के समय इनकी अवस्था केवल ९ वर्ष की थी। दस वर्ष की अवस्था में आप कच्ची सड़क से ऊँट की सवारी पर जैतारण ( मारवाड़) से भानपुर ( इन्दौर रान्य ) में आये और अपने नाना जीतमलजी कोठारी के निरीक्षण में दूकान का काम करने लगे। थोड़े ही दिनों में आपने व्यापार में अच्छी पारदर्शिता प्राप्त करली । सम्वत १९४८ में आप वहाँ की सुप्रसिद्ध श्रीकिशन शिवनारायण नामक फर्म पर अपने नाना के स्थान पर मुनीम हो गये । उक्त फर्म के मालिक इन्दौर के सुप्रसिद्ध जागीरदार श्रीमान् सांवतरामजी कोठारी थे । भण्डारीजी ने उक्त फर्म का कार्य सुचारू रूप से सञ्चालित किया। इसके बाद सम्बत १९५७ में आपने जसराज सुखसम्पतराज नामक स्वतन्त्र फर्म खोली। भानपुर में इस फर्म की अच्छी प्रतिष्ठा थी । भण्डारी जसराजजी भानपुर परगने में अच्छे लोकप्रिय और प्रतिष्ठित साहूकार समझे जाते थे। आपका देहान्त सम्वत १९४१ में हुआ । आपके सुखसम्पतराज, चन्द्रराज, मोतीलाल और प्रेमराज नामक चार पुत्र हुए।
भण्डारी बन्धु-जसराजजी के बड़े पुत्र सुखसम्पतिराजजी का जन्म सम्वत १९५० की अगहन सुदी १४ को हुभा। ईसवी सन् १९१३ में भाप श्री.वेङ्कटेश्वर समाचार और सन् १९१४ में सद्धर्म प्रचारक के संयुक्त सम्पादक हुए। ईसवी सन् १९१५ में इन्होंने पाटलिपुत्र के संयुक्त सम्पादक का कार्य किया। इस समय इस पत्र के प्रधान सम्पादक सुप्रख्यात इतिहास वेत्ता श्रीमान् के. पी. आयसवाल बैरिस्टर थे। इसके दूसरे ही साल ये इन्दौर राज्य के "मल्लारि मार्तण्ड” नामक साप्ताहिक पत्र के हिन्दी सम्पादक हुए । ईसवी सन १९२३ में इन्होंने अजमेर से "नवीन भारत” नामक साताहिक पत्र को सञ्चालित किया। ईसवी सन् १९२६ से आपने इन्दौर दरवार की सहायता से "किसान" नामक मासिक पत्र निकाला जो चार वर्ष तक चलता रहा। इस पत्र की स्वर्गीय लाला लाजपतराय ने अपने ( People ) नामक सुप्रख्यात पत्र में बड़ी प्रशंसा की और भारतवर्ष के घर-घर में इसके प्रचार की आवश्यकता बतलाई और भी कई देशमान्य नेताओं ने, कृषि विद्या विशारदों ने तथा हिन्दी के प्रायः सब समाचारय पत्रों ने "किसान" की बड़ी सराहना की।
कई प्रसिद्ध पत्रों के सम्पादन करने के अतिरिक्त भण्डारी सुखसम्पतिरायजी ने हिन्दी में लगभग बावीस ग्रन्थ लिखे। इनमें "भारतदर्शन" पर स्वर्गीय लाला लाजपतरायजी ने और "तिलक दर्शन" पर माननीय पण्डित मदन मोहन मालवीयजी ने भूमिका लिखी। इनका राजनीति विज्ञान हिंदी साहित्य सम्मेलन की उत्तमा परीक्षा में राजनीति विषय की पाठ्य पुस्तक मुकर्रर की गई है। "भारत के देशी राज्य" नामक ग्रन्थ पर इन्हें इन्दौर दरबार से १५०००) का वृहत पुरस्कार मिला। राजपूताना सेन्ट्रल इण्डिया के एज्युकेशन बोर्ड ने इस ग्रन्थ को एफ.ए.के लिये रेपिड रीडिंग ग्रन्थ के बतौर स्वीकार किया था।