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सवाल जाति का इतिहास
भंडारी थानसिंह और पोमसिंह भंडारी के पुत्र मलूकचंद को देवड़ा रींवा नामक डाला । यहाँ यह बात ध्यान में रखने योग्य है कि महाराजा की आज्ञा उन्हें कैद करने की थी । भंडारी खींवसी और भंडारी रघुनाथ भी कैद कर लिये गये । के सब नामी भंडारी जेल में डाल दिये गये । कई भंडारी पीछे महाराजा को भंडारी रघुनाथ को छोड़ने के लिये मज़बूर किया। सौंपा गया ।
राजपूत सरदार ने मार मरवाने की न थी, सिर्फ
इस समय प्रायः सब रुपये देकर छूटे । राजनैतिक परिस्थिति ने फिर भंडारी रघुनाथ को राज्य कार्य्यं
इसके बाद सम्वत १७८५ में फिर अन्य भंडारियों के साथ राय रघुनाथसिंहजी को भी कैद हुई। पर थोड़े ही दिनों के बाद जयपुर नरेश ने जोधपुर पर चढ़ाई की । जयसिंहजी के पास बड़ी भारी फौज थी और जोधपुर राज्य का अस्तित्व तक खतरे में पड़ गया था। ऐसी कठिन परिस्थिति में निरुपाय होकर दरबार ने फिर भंडारी रघुनाथ को कैद से मुक्त किया और उन्हें बुलाकर कहा कि हालत बड़ी माजुक है। जयसिंहजी फौज लेकर चढ़ आये हैं और घर का भेद फूटा हुआ है। तुम बड़े फाड़ खोड़ करने वाले आदमी हो । अब ऐसा उपाय करो जिससे जयसिंहजी वापस लौट जावें । अगर तुम यह काम कर सको तो तुम्हारी बड़ी भारी बंदगी समझी जायगी। इस पर भंडारी रघुनाथसिंहजी ने अर्ज की कि खाविंदो की कृपा से सब ठीक हो जायगा । इसके बाद भंडारी रघुनाथजी जयसिंहजी के पास गये । यहाँ यह कह देना आवश्यक है कि जयसिंहजी पर भंडारी रघुनाथजी का बड़ा भारी प्रभाव था । वे इन्हें राजस्थान के बड़े मुत्सुद्दी मानते थे । ज्योंही भंडारीजी जयसिंहजी के पास पहुँचे त्योंही महाराजा जय सिंहजी ने खड़े होकर आप का स्वागत किया और पीछे मारवाड़ी भाषा में कहा - " भंडारी आवो माको आवणो हुवो जब थाँको छुटको हुवो ।”
इसके बाद भंडारी रघुनाथजी मे जयसिंहजी को फौज खर्च के लिये दस लाख रुपये देने का वायदा कर उन्हें वापस लौटा दिया। रुपयों की जमानत के लिये खुद भंडारी रघुनाथ, भंडारी मनरूप, भंडारी अमरदास, भंडारी रत्नसिंह और भंडारी मेघराज आदि मुत्सुद्दियों को भल में दे दिये गये। हम पहले कह चुके हैं कि भंडारी रघुनाथजी का जयपुर नरेश महाराजा जयसिंहजी पर बड़ा प्रभाव था । ये शीघ्र ही छूट कर जोधपुर आगये और उन्होंने महाराजा से मुजरा किया।
इस प्रकार जोधपुर राज्य की कई महत्वपूर्ण सेवाएं करने के बाद भंडारी रघुनाथ सम्बत १७९८ में मेड़ता मुकाम पर स्वर्गवासी हुए ।
भण्डारी अनोपसिंहजी— भाप भंडारी रघुनाथसिंहजी के पुत्र थे । आप बड़े बहादुर और १३४