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भण्डार
सम्वत् १७७१ में बादशाह फर्रुखसियर किसी कारणवच महाराजा भजितसिंहजी से नाराज हो गया और उसने अपने सेनापति सैयद हुसेनअली बख़शी को बड़ी सेना देकर मारवाद पर भेजा । इस समय महाराजा ने अपने राज्य के हित की दृष्टि से बादशाही फौज से लड़ना ठीक नहीं समझा। उन्होंने सैयद हुसेनअली से सन्धि करली । इतना ही नहीं उन्होंने बादशाही दरबार में अपने अनुकूल परिस्थिति पैदा करने के लिए महाराजकुमार अभयसिंहजी और भंडारी रघुनाथसिंहजी को भेजा । बादशाह ने आप लोगों का बड़ा आदर किया । भंडारी रघुनाथसिंहजी ने बादशाह को बड़ी ही कुशलता के साथ समझाया और महाराजा अजितसिंहजी के लिए उसके मनमें सद्भाव उत्पन्न कर दिये ।
को इतना खुश कर दिया कि उसने महाराजा का गुजरात की सूबेदारी पर नियुक्त किया । सम्वत् अभयसिंहनी के साथ जोधपुर लौटे तब वहां उनका मे उनकी इन महान् सेवाओं की बड़ी प्रशंसा की ।
भंडारी रघुनाथसिंहजी ने बादशाह मम्सब छः हजारी जात छः हजार सवारों का कर उन्हें १७७२ में जब भंडारी रघुनाथसिंहजी महाराजा कुमार राज्य की ओर से बड़ा आदरातिथ्य किया गया । दरबार
सम्वत् १७७० के चैत्र में भंडारी खींवसीजी क़ैद से मुक्त हुए और दरबार ने आसोप के डेरे में उन्हें प्रधानगी का सर्वोच्च पद प्रदान किया गया । इस समय भंडारी रघुनाथ भंडारी खीवसीजी के साथ प्रधानगी का काम करने लगे। कुछ वर्षों तक आप लोगों ने साथ-साथ काम किया। महाराजा आपके कार्मों से बड़े प्रसन्न हुए और आप दोनों बन्धुओं को हाथी, पालकी, सिरोपाव, जड़ाऊ कड़ा, मोतियों की कंठी, तलवार और कटारी देकर सम्मानित किया ।
सम्वत् १७७९ में महाराजा अजितसिंहजी ने फिर महाराजकुमार अभयसिंहजी के साथ भंडारी रघुनाथसिंहजी को बादशाह के हुजूर में दिल्ली भेना । इस समय आप कई मास तक दिल्ली रहे। आपकी बादशाह से बड़ी घनिष्टता हो गई । बादशाह आपकी सलाह को बहुत मान देने लगा। इसके बाद जब आप दिल्ली में थे तब संवत् १७८१ की अषाढ़ सुदी १३ को महाराजा अजितसिंहजी उनके पुत्र बख्तसिंहजी द्वारा मार डाले गये ।
सरदारों की नाराजी - भंडारी रघुनाथ और भंडारी खींवसी का अपूर्व प्रताप मारवाड़ के लगे और किसी न किसी प्रकार उन्हें
सरदारों से देखा न गया। वे उनसे बड़ा विद्वेष करने अपने गौरव से गिराने का यत्न करने लगे । बहुत से सरदारों ने विद्रोह कर दिया । मथुरा सुकाम पर कुछ सरदारों ने तत्कालीन महाराज से कहा कि सब सरदार भंडारियों से नाराज है और जब तक भंडारी कैद न किये जायेंगे वे सन्तुष्ट न होंगे। महाराजा ने अपनी इच्छा के विरुद्ध सरदारों की बात स्वीकार करली। उन्होंने भंडारियों को कैद करने का हुक्म दे दिया। इस समय भंडारी खींवसी के पुत्र
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