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________________ ओसवाल जाति का इतिहास जेठमल लाडमल भंडारी, मद्रास भंडारी जेठमली सीबसीबी के परिवार में हैं । भापका कुटुम्ब सांचोर में रहता है। भणी जेठमजी का स्वर्गवास संवत् १९०४ में हुआ । आपके प्रतापमलजी, लाडमलजी तथा हीरालाजी नामक । पुत्र हुए इनमें प्रतापमक जी तथा हीरालालजी सांचोर में ही निवास करते हैं। भंगरी लाइमलजी का जन्म संवत् १९६५ में हुभा । आपने एफ० ए० तक शिक्षा पाई । आपका विवाह जोधपुर में गणेशमलजी सराफ के यहाँ हुआ है। इस समय आप उनके पुत्र सरदारमलनी सराकरे साथ सरदारमल लाडमल के माम से मदास में कारबार करते हैं। भण्डारी रायचन्दजी का परिवार भंडारी रायचन्दनी, भंडारी दीपाजी के चतुर्थ पुत्र थे। जाप बढ़े वीर और रणकुशल थे। आप जोधपुर राज्य की सेना के प्रधान सेनापति थे और आपने कई छोटी बड़ी लड़ाइयों में भाग लिया था। सम्वत् १७३९ की भादवा वदी ९ को राणापुर में गुजरात के शासक महम्मद के साथ जोधपुरी सेना का युद्ध हुमा था, उसमें भंडारी रायचन्दजी ही वीरता के साथ युद्ध करते हुए काम आये । भण्डारी रघुनाथसिंहजी-जिन महान् राजनीतिज्ञों एवं वीरों ने रानस्थान के इतिहास के पृष्ठों को उज्ज्वल किया है, उनमें भंडारी रघुनाथसिंहजी का आसन बहुत उँचा है। ये अपने समय के महापुरुष थे और मारवाड़ की राजनीति के मैदान में इन्होंने बड़े-बड़े खेल खेले। आज भी मारवाद की जनता बड़े गौरव के साथ इनका नाम लेती है । “भजे दिलीरो पातलाह और राजा तू रघुनाथ" की बहावत मारवाद के बच्चे बच्चे के मुंह पर है। यह बात निःसन्देह रूप से कही जा सकती है कि मारवाड़ में जितना प्रकाश इनकी कीर्ति का फैला उतना दो एक मुसदियों ही का फैला होगा। खींवसीजी ही की तरह इनका प्रभाव भी केवल राजस्थान की सीमा तक ही परिमित नहीं था, वरन उत्तर में ठेठ दिल्ली और दक्षिण पश्चिम में गुजरात तक की राजनीति पर इनका बड़ा प्रभाव था। महाराजा अजितसिंहजी के जमाने में मुत्सदियों में दो सबसे अधिक प्रकाशमान तारे थे-एक खोवसीजी और दूसरे रघुनाथसिंहजी । दुःख की बात है कि इनका पूरा इतिहास उपलब्ध नहीं है। सम्बत् १०१६ में भंडारी रघुनाथजी दीवानगी की प्रतिष्ठित पद पर अधिष्ठित किये गये। इस दीवानगी के काम को मापने बड़ी ही उत्तमता के साथ किया और इसके उपलक्ष्य में महाराजा अजितसिंहजी ने सम्वत् 2010 में भापको सपरावां की सर्वोच उपाधि से विभूषित किया। इसी समय महाराजा ने आपको हाथी, पालकी, सिरोपाव, मोतियों की कंठी आदि देकर सम्मानित किया।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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