________________
ओसवाल जाति की उत्पत्ति
प्राचीन ग्रन्थों में उपकेश गच्छ का उल्लेख नहीं हैं। उपरोक्त कारणों से संभव है कि संवत् ५०० के पश्चात् : और संवत् १००० के पूर्व किसी समय उपकेश या ओसवाल जाति की उत्पत्ति हुई होगी और उसी समय से उपकेशगच्छ का नामकरण हुआ होगा।
हमारा खयाल है कि बाबू साहब का उपरोक्त मत तर्क, प्रमाण और युक्तियों से परिपूर्ण है। . बाबू पूरणचन्दजी इतिहास के उन विद्वानों में से हैं जिन्होंने अपना सारा जीवन इन्हीं ऐतिहासिक खोजों के पीछे उत्सर्ग कर दिया है। ऐसी स्थिति में आपके निकाले हुए तथ्य को स्वीकार करने में किसी भी इति. हासकार को कोई आपत्ति नहीं हो सकती।
हम जानते हैं कि हमारे निकाले हुए इस निष्कर्ष से बहुत से ऐसे सजनों को जोकि प्राचीनता ही में सब कुछ गौरव का अनुभव करते हैं अवश्य कुछ न कुछ असंतोष होगा। क्योंकि भारतवर्ष के कई मवीन और प्राचीन लेखकों की प्रायः यह प्रवृति रही है कि वे किसी भी तरह अपनी जाति अपने धर्म और भपने रीति रिवाजों को प्राचीन से प्राचीन सिद्ध करने की चेष्टा करते हैं। साथ ही उसके गौरव को बतलाने के लिए उसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की चमत्कार पूर्ण घटनाओं की सृष्टि करते हैं, पर हम लोगों का इस प्रकार के सजनों से बड़ा ही नम्र मतभेद है। हमारा अपना खयाल है कि शुद्ध इतिहासवेत्ता के सामने शुद्ध सत्य ही एक आदर्श रहता है । वह सब प्रकार के पक्षपातों और सब प्रकार के प्रभावों से मुक्त होकर एक निष्पक्ष जज की तरह अपनी स्वतंत्र खोजों और अन्वेषणाओं के द्वारा सत्य पर पहुंचने की चेष्टा करता है। हम यह मानते हैं कि मानवीय बुद्धि बहुत परिमित है और अत्यन्त चेष्टा करने पर भी सत्य के नजदीक पहुँचने में कभी २ वह असफल हो जाती है, मगर अंत में सत्य के खोज की पूर्ण लालसा उसे पूर्ण सत्य पर नहीं तो भी उसके निकटतम पहुँचा देने में बहुत सहायता करती है।
दूसरी बात यह है कि दूसरे लोगों की तरह हम लोग अपने सारे गौरव और सारे वैभव की झलक केवल प्राचीनता में देखने के ही पक्षपाती नहीं । हम स्पष्टरूप से देखते हैं कि संसार की रंग-स्थली में समय र पर कई नवीन जातियाँ पैदा होती हैं और वे अपनी नवीन बुद्धि, नवीन पराक्रम, और नवीन प्रतिभा से संसार की सभ्यता और संस्कृति के ऊपर एक नवीन प्रकाश डालती है और अपने लिए एक बहुत ही गौरव पूर्ण नवीन इतिहास का निर्माण कर जाती है। हम अहलानिया इस बात को कह सकते हैं कि किसी भी जाति का गौरव इस बात में नहीं है कि वह कितनी प्राचीन है या कितनी नवीन, वरन उसका गौरव उसके द्वारा किये हुए उन कार्यों से है जो उसकी महामता के सूचक है और जो मनुष्य जाति को एक नये प्रकार का संदेश देते हैं।
भोसवाल जाति का गौरव इस बात से नहीं है कि वह विक्रम से ४०० वर्ष पूर्व पैदा हुई थी या