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________________ मुहणोत को जो खरीते भेजे उनकी असली नकलै हमारे पास हैं। उनसे मेवाड़ की तत्कालीन निर्वल अवस्था पर बड़ा ही सुन्दर प्रकाश गिरता है । सम्वत् १८३० की फाल्गुन सुदी ३ को महाराजा ने सुरतरामजी को मुसाहिबी, 'राव' की पदवी और लगभग ३००००) रुपयों की लागत का बहुमूल्य सिरोपाव प्रदान किया। इसके अतिरिक्त आपको आपके कामों की प्रशंसा में कई खास रुक्के प्रदान किये । सम्वत् १८३१ के द्वितीय वैशाख सुदी ८ को कर्णमूल नामक रोग हुआ. और उससे दो दिन के बाद आपका स्वर्गवास हो गया । आपकी दाह क्रिया नैणसीजी के बाग में हुई । आपके साथ दो सतियाँ हुई। आपकी बैकुण्ठी तेरह खण्डी बनी थी। आपकी स्मशान यात्रा में सब प्रसिद्ध २ सरदार जागीरदार और लगभग ५००० मनुष्य थे । राव सूरतरामजी को संवत् १८३१ के ज्येष्ट वदी १४ को राव सूरतरामजी के मकान पर स्वयं जोधपुर नरेश महाराजा विजयसिंहजी पधारे और आपके पुत्र सवाईरामजी और ज्ञानमलजी को बड़ी तसल्ली दी और बहुत शोक प्रकट किया । मुहणोत खानदान में राव सूरतरामजी बड़े प्रभावशाली, बीर और कार्य्यकुशल मुत्सद्दी हुए । आपने प्रधान सेनापति, दीवान, प्रधान आदि बड़े २ पदों पर बड़ी सफलता के साथ काम किया। जोधपुर महाराजा ने आपको बड़े २ सम्मान प्रदान किये थे । अन्य बड़े २ महाराजा भी आपका बड़ा आदर करते थे । सत्कालीन बून्दी मरेश ने आपको उठकर ताज़ीम देने का, तथा बांह पसार कर मिलने किया था। कोटा नरेश ने भी आपको इसी प्रकार का उच्च सम्मान प्रदान किया था। खड़े होकर आपकी नजर लेते थे। जैसलमेर, कृष्णगढ़, इंदौर और गवालियर के "ठाकुरां दीवान श्रीसूरतरामजी” लिखा करते थे । का कुरब प्रदान बीकानेर दरबार नरेश आपको मुहणोत ठाकुर सवाईरामजी — मुहणोत सूरतरामजी की मृत्यु के बाद उनके बड़े पुत्र मुहणोत सवाईरामजी विक्रम सम्वत् १८३१ में जोधपुर के मुसाहिव आला ( Prime minister ) बनाये गये । आपके समय में २०००० रेख की जागीर बराबर चलती रही । सम्वत् १८४९ में बीकानेर मरेश श्री गजराजसिंहजी और उनके कुँवर के बीच झगड़ा हो गया। इस समय जोधपुर दरबार मे एक बढ़ी सेना देकर सवाईरामजी को बीकानेर भेजा। आपने वहां पहुँच कर पिता पुत्र के बीच मेल करवा दिया । दीवान मुहणोत ज्ञानमलजी - मुहणोत वंश में आप बड़े प्रतापी, राज्य कार्य कुशल और वीर मुसदी हो गये । आपका जन्म सम्बत १८१६ के चैत्र वदी १२ शुक्रवार को हुआ । जोधपुर नरेश महाराजा विजयसिंहजी ने केकड़ी नरेश राजा भमरसिंहजी को कृष्णगढ़ के पास ४८ ५७
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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