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श्रोसवाल जाति का इतिहास
मौलाद नहीं हुई और अणदरामजी की कुछ पीदियों तक बंश चल कर कुछ समय बाद उसका अन्त हो गया।
रावजी सुरतरामजी
__ भाप भगवतसिंहजी के पुत्र थे। मुहणोत खानदान में आप भी बड़े प्रतापी और बहादुर हुए। महाराजा बखतसिंहजी के राज्य काल में सम्वत् १८०८ में आप फौज बख्शी के उच्च सैनिक पद पर नियुक्त किये गये। आपने यह कार्य बड़ी ही उत्तमता के साथ किया। महाराजा ने आपकी सेवाओं से प्रसन्न होकर आपको ३००० रेख के लुनावास और पालुं नामक दो गाँव जागीर में दिये। आपने कई युद्धों में प्रधान सेनापति की हैसियत से सेना संगलन किया था। दरबार आपकी बहादुरी और कार्य कुशलता से बहुत प्रसन्न हुए और आपको दीवानगी तथा १५०००) प्रतिसाल की रेख के गाँव और पालकी तथा बहुमूल्य शिरोपाव देकर आपकी प्रतिष्ठा की।
सम्वत् १८२२ में दक्षिणी खानू मारवाड़ पर चढ़ आया। महाराजा के हुक्म से सुरतरामजी इसके मुकाबले के लिये गये। युद्ध हुआ और इसमें सुरतराम को सफलता मिली। उन्होंने शत्रुओं की सामग्री छीनली। खानू तो अजमेर की ओर तथा उसके सहायक चंपावत सरदार सांभर भाग गये। इस युद्ध को जीत कर वापस आते समय आपने पीह नामक ग्राम में मुकाम किया। वहाँ से पर्वतसर जिले के बसी नामक गाँव में जाकर घेरा डारा। वहाँ के सरदार मोहनसिंहजी ने सामना किया। पर वे हार गये। सुरतरामजी मोहनसिंह से दण्ड वसूल कर जोधपुर लौट आये, जहाँ महाराजा ने आपकी बड़ी इजत की। वे आपके साहस पूर्ण कार्यों से बड़े प्रसन्न हुए।
इसी अर्से में उदयपुर के महाराणा राजसिंहजी का देहान्त हो गया और उनके स्थान पर महाराणा बरसीजी राज्य सिंहासन पर बैठे । ये बड़ी निर्वल प्रकृति के थे। सरदारों ने इनके खिलाफ़ विद्रोह का झण्डा उठाया। महाराणाजी घबराये और उन्होंने जोधपुर के महाराजा बिजयसिंहजी से सहायता मांगी और इसके बदले में गोडवाड़ का परगना देने का वचन दिया। इस पर महाराजा विजयसिंहजी ने महाराणाजी की सहायता के लिये सेना भेजी। राणाजी की मनोकामना सिद्ध हुई और उन्होंने गोडवाड़ का परगना महाराजा विजयसिंहजी को लिख दिया । महाराजा ने सेना भेजकर गोडवाड़ पर अधिकार कर लिया। इस गोडवाद के देसूरी नामक कस्बे में जोधपुर दरबार पधारे और महाराणा भरसीजी वहीं आकर महाराजा से मिले। यहाँ यह बात ध्यान में रखना चाहिये कि गोडवाद के मामले को तय करने में सब से प्रधान हाथ मुहणोत सूरतरामजी का था। इस समय महाराणा अरसीजी मे महाराजा विजयसिंहजी