________________
मुहणोत
और बैरसीजी ( नैणसीजी के द्वितीय और तृतीय पुत्र ) मालवे की ओर से आकर रहे थे। सिंहवी विट्ठलदासजी ने कुँवरजी से निवेदन कर अपने दौहित्र टोडरमल ( सुन्दरदासजी के पौत्र और तेजमालजी के पुत्र ) at स्त्रियों और बाल बच्चों सहित मारने से बचाया ।
मुहणोत संग्रामसिंहजी
आप करमसीजी के पुत्र और दीवान नैणसी के पौत्र थे । की पुत्री से हुआ जिससे आपको भगवतसिंहजी और सिहोजी नामक पुत्र हुए।
कर्मसीजी के दीवाल में चुनाये जाने का तथा उनके कुटुम्बियों के मारे जाने का हाल हम पहले लिख चुके हैं। ऐसे कठिन समय में नागोर से फूला नामक एक विश्वसनीय धाय वालक संग्रामसिंहजी को लेकर कृष्णगढ़ चली आई। तब से आप वहीं रहने लगे । कृष्णगढ़ महाराजा ने इन पर बड़ी कृपा रखी और इन्हें कुए, खेत आदि प्रदान किये ।
कुछ वर्ष व्यतीत होने पर भण्डारी खींवसीजी (प्रधान) और भण्डारी रघुनाथजी ( दीवान ) मे तत्कालीन जोधपुर नरेश महाराजा अजितसिंहजी से निवेदन किया कि संग्रामसिंहजी और वैरीसिंहजी के पुत्र सामन्तसिंहजी जोधपुर बुला लिये जावें । महाराजा ने यह बात स्वीकार करली । आप लोग जोधपुर बुला लिये गये। इतना ही नहीं संग्रामसिंहजी को सात परगनों की हुकूमत दी गई। आपने बड़े २ सैनिक पदों पर भी कार्य किया ।
आपका विवाह मुहता कालरामजी
सम्वत १७३६ में जब बाहरी शत्रुओं के घेरे के कारण राज्य परिवार ने जोधपुर किला खाली कर दिया, तब माजी साहबा वाघेलीजी तथा दूसरे जनाना सरदारों ने मुहणोतों की हवेली में निवास करने की इच्छा प्रकट की । तदनुसार कुछ दिनों तक राज्य कुटुम्ब की महिलाएँ मुहणोंतों की हवेली में रहीं ।
सम्वत् १७७२ में महाराजा अभयसिंहजी ने संग्रामसिंहजी को मेड़ता में बाग बनवाने के लिये १६० बीघा जमीन इनायत की, जो अभी तक उनके वंशजों के अधिकार में है ।
यह बाग सुहणोतों के
बाग के नाम से मशहूर है ।
भगवतसिंहजी
आप संग्रामसिंहजी के पुत्र थे । आपका विवाह मुहता श्रीचन्द्रजी की पुत्री से हुआ। आपके तीन पुत्र थे, जिनका नाम सूरतरामजी, साहिबरामजी और अणदरामजी था। इनमें साहिबरामजी के
* यह हवेली किले के पास ही है।
५५