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पोसवाल माति का इतिहास
मणसीजी और काका सुन्दरदासजी की मृत्यु घटना से श्री महाराजा ने इन्हें तथा इनके माता वैरसीजी, समरसीजी, और सुन्दरदासजी के पुत्र तेजमालजी, मोहनदासजी को छोड़ दिए थे, परन्तु उस समय महाराजा के पास इनके शत्रुओं का ज़ोर बहुत होने से इनको यही आशंका बनी रही कि कहीं फिर हम लोगों को भय का सामना करना न पड़े। इसी से कर्मसीजी नागौर के राजा रायसिंहजी * की सेवा में चले गए। इनको इसी संवत् में राजाजी ने 'दीवानगी' और 'जागीर' इनायत की ।
संवत् १०११ के अषाद वदी १२ को शोलापुर (दक्षिण) में राव रायसिंहजी केवळ चार घड़ी बीमार रह कर देवलोक हो गए। सरदार मुत्सुद्दी आदि ने जो इनके साथ थे, वहाँ के वैच से उनकी इस अकस्मात मृत्यु का कारण पूछा, तो उसने, अपनी साधारण भाषा में कहा कि “कर्मानो दोष है" अर्थात् कर्म की गति ऐसी ही थी। परन्तु उन सरदार आदि ने यह समास लिया कि इस कर्मा अर्थात् कर्मसी ( मोहनोत ) ने कुछ ऐसा षड़यंत्र किया कि जिससे इनकी मृत्यु हुई है। उस समय सिंहवी चूहदमलजी दीवान थे, और उनको कर्मसीजी का नागोर में ( राजाजी के समीप ) रहना बहुत अखरता था इन्होंने भी कर्मसीजी के खिलाफ बहुत जहर उगला । समय अनुकूल देख कर कर्मसीजी को तो वहीं ( शोलापुर में) भीत में चुनवा कर मरवा दिये और इनके परिवार वालों को भी मरवा देने के लिए नागौर के कुंवर इन्द्रसिंहजी से विनती की। इस पर नागोर में नीचे लिखे इनके कुटुम्बी मरवाये गये ।
(१) सुन्दरदासजी के पुत्र मोहनदासजी और तेजमालजी । (1) करमसीजी के ज्येष्ठ पुत्र प्रतापसिंहजी । (1) मोहनदासजी के साले हरिदासजी। (३) मोहनदासजी के पुत्र गोकुलदासजी, जो केवल २४ वर्ष की वय के थे, और दो छोटे बचें। (1) कला का पुत्र नारायणदास, जो करमसीबी के साथ में था, वहीं मारा गया।
इस प्रकार निर्दोष हत्याएं कर राज्य को कलंकित किया गया। किन्तु ईश्वर की लीला अपरम्पार है। इस कहावत के अनुसार कि "जिनको रक्खे साँईया, मार सके नहिं कोय । उस जगदीश्वर को इस कुटुम्ब की जड़ फिर भी हरी रखना स्वीकार थी। करमसीजी के द्वितीय पुत्र संग्रामसिंहजी और नैणसीजी के द्वितीय पुत्र समरसीजी के द्वितीय पुत्र सामन्तसिंहजी को 'फूला' नामक धाय और एक दूसरी 'डावड़ी' ( नौकरानी) लेकर नागोर से छिपे तौर से निकल कर कृष्णगद चली आई जहाँ कि समरसीजी
• नागोर का राज्य उस समय जोधपुर राज्य से स्वतंत्र था।