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________________ * मुहणोत स्थानों में मैनमन्दिर और उपाश्रय बनवाये। उन सब का हाल उपलब्ध नहीं है। पर जिन जिन का पता लगा है उन पर थोड़ा सा प्रकाश डालना आवश्यक प्रतीत होता है। (1) जालोर मारवाड़ का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है। जयमलजी यहां के शासक रह चुके थे। इस किले पर जो जैन मन्दिर हैं, उनका जीर्णोद्धार जयमलजी ने करवाया और उनमें प्रतिमाएं प्रतिष्ठित करवाई। इसके सिवा आपने उक्त नगर में तपागच्छ का उपाश्रय भी बनवाया । ___ इसके अतिरिक्त यहीं आपने चौमुखजी के मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई थी, जिसका सविस्तार वर्णन हम जालौर के मन्दिरों के प्रकरण में कर चुके हैं । इनके अतिरिक्त सम्बत् १६८३ में आपने शत्रुजयजी में एक जैन मन्दिर बनवाया । आपने मेड़ता, सीवाणा, फलौदी आदि मगरों में भी जैन मन्दिर और उपाश्राय बनवाये । सम्बत् १६८३ में आपने शर्बुजय, आबू और गिरनारजी की यात्राएँ की और बड़े-बड़े संघ निकलवाये । सम्वत् १६४६ में जयमलजी ने जोधपुर में चौमुखजी का मन्दिर बनवाया। ___ सम्वत् १६८७ में आपने हजारों भूखों और अनाथों को अन्न और वस दान दिया। एक वर्षसक बराबर वान देते रहे । आपकी दानवीरता दूर दूर तक प्रसिद्ध थी। ठाकुर मुहणोत नैणसी-जिन महापुरुषों ने राजस्थान के राजनैतिक, सैनिक और साहित्यिक इतिहास को गौरवान्वित किया है, उनमें मुहणोत नेणसी का भासन बहुत ऊँचा है। आपकी कीर्ति राजस्थान तक ही परिमित नहीं है, पर वह सारे भारतवर्ष के साहित्य संसार में फैली हुई है। आप कलम और तलवार के धनी थे । अर्थात् भाप वीर और विद्वान् दोनों ही थे। आपका सारा जीवन राज्य काय्यं, देश सेवा, विद्यानुराग, और परोपकार वृति में लगा। आपने राजस्थान का एक अमूल्य इतिहास ग्रंथ लिखा, जिससे आज के बड़े २ दिग्गज इतिहासवेत्ता प्रकाश ग्रहण करते हैं। आपने मारवाड़ के प्रामों की खानाशुमारी की और प्रत्येक गांव की जन संख्या, कुंओं, जमीन और आय आदि का पूरा हाल अपने ग्रंथ में दिया। आपने महाराजा जसवन्तसिंहजी के समय में दीवान पद पर रह कर कई मार्के के बड़े । काम किये। अब हम आपकी महान् जीवनी पर थोड़ा सा प्रकाश डालना चाहते हैं। ____ आप, जैसा कि हम ऊपर कह चुके हैं, जयमलजी के पुत्र थे और आपका जन्म जयमलजी की प्रथम पत्नी सरूपदे से हुआ था। आपका पहला विवाह भंडारी नारायणदासजी की पुत्री से और दूसरा विवाह मेहता भीमराजजी की कन्या से हुआ। दूसरी पत्नी से कर्मसीजी,बेरीसीजी और समरसीजी हुए। नेणसी जी के सैनिक कार्य-नेणसीजी बड़े बहादुर सैनिक थे। भापको अपने जीवन में कई
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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