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________________ श्रोतवाल जाति का इतिहास रूदाइयाँ लड़मी पड़ी। सम्वत् १६८८ में मगरे के मेवों (मीनों) ने बड़ा उत्पात मचाया था। लूटमार से इन्होंने प्रजा को बड़ा तंग कर रखा था। महाराजा गजसिंहजी की आज्ञा से आपने उन पर सैनिक चदाई की और मेवों का (मीनों) दमन कर वहाँ शान्ति स्थापित की। वि० सं० १७०० में महेचा महेसदास बागी होकर राइधरे के गाँवों में बिगाद करता रहा, जिस पर महाराज जसवन्तसिंह ने नैणसी को राइधरे भेजा। उसने राइधरे को विजय कर वहाँ के कोट (शहरपनाह ) और मकानों को गिरवा दिया तथा महेचा महेसदास को वहाँ से निकाल कर राधड़ा अपनी फौज के मुखिया रावल जगमल भारमलोत (भारमल के पुत्र) को दिया। सं० १७०२ में रावत नराण (नारायण ) सोजत की ओर के गाँवों को लूटता था, जिससे महाराज ने मुहणोत नैणसी तथा उसके छोटे भाई सुन्दरदास को उस पर भेजा। उन्होंने कूकड़ा, कोट, कराणा, माँकड आदि गाँवों को नष्ट कर दिया । वि० सं० १७॥ में महाराज जसवन्तसिंह (प्रथम ) ने मियाँ फरासत की जगह नैणसी को अपना दीवान बनाया। महाराज जसवन्तसिंह और औरंगजेब के बीच अनबन होने के कारण वि० सं० १७१५ में जैसलमेर के रावल सबलसिंह ने फलोदी और पोकरण जिलों के 10 गाँव लुटे, जिस पर महाराज ने अहमदाबाद जाते हुए, मार्ग से ही मुहणोत नैणसी को जैसलमेर पर चढ़ाई करने की आज्ञा दी। इस पर वह जोधपुर आया और वहाँ से सैन्य सहित चढ़कर उसने पोकरण में डेरा किया। इस पर सबलसिंह का पुत्र अमरसिंह, जो पोकरण जिले के गाँवों में था, भागकर जैसलमेर से तीन कोस की दूरी के गाँव बासणपी में जा ठहरा। परन्तु जब रावल किला छोड़ कर लड़ने को न आए, तब नैणसी आसणी कोट को लूटकर लौट गये। नैणसी की मृत्यु-संवत् १७२३ में महाराज जसवन्तसिंह औरंगाबाद में थे उस समय मुहणोत मैणसी तथा उसका भाई सुन्दरदास दोनों उनके साथ थे। किसी कारण वशात् महाराज उनसे अप्रसन्न होरहे थे, जिससे पौष सुदी ९ के दिन उन दोनों को कैद कर दिया। महाराज के अप्रसन्न होने का ठीक कारण ज्ञात नहीं हुमा । परन्तु जमश्रुति से पाया जाता है कि नैणसी ने अपने रिश्तेदारों को बड़े बड़े पदों पर नियत कर दिया था और ये लोग अपने स्वार्थ के लिये प्रजा पर अत्याचार किया करते थे। इसी बात जामने पर महाराज उससे अप्रसन्न हो रहे थे। . वि० सं० १७२५ में महाराज ने एक लाख रुपया दंड लगाकर इन दोनों भाइयों को छोड़ दिया; परन्तु इन्होंने एक पैसा तक देना स्वीकार न किया । इस विषय के नीचे लिखे हुए दोहे राजपूताने में अब तक प्रसिद्ध हैं १ मगरा--पहाड़ी प्रदेश, सोजत और जैतारण परगने में अर्बली पहास की श्रेणी को कहते हैं ।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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