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श्रोसवात जाति का इतिहास
में उक्त फौज से रावजी का युद्ध हुआ। वहाँ अन्य वीरों के साथ अचलाजी भी वीरगति को प्राप्त हुए। इनके स्मारक में उक्त ग्राम में एक छत्री बनवाई गई जो अब तक विद्यमान है।
जयमलजी
. मुहणोत वंश में आप बड़े प्रतापशाली पुरुष हुए। आपका जन्म सम्बत् ११३८ की माषसुदी ९ बुधवार को हुना। आपका पहला विवाह वैद मुहता लालचन्द्रजी की पुत्री स्वरूपादे से हुआ, जिनसे नैणसीजी, सुन्दरसीजी, और आसकर्णजी हुए। दूसरा विवाह सिंहवी बिदसिंहजी की पुत्री सुहागदे से हुभा, जिनसे नृसिंहदासजी हुए।
___ जयमलजी बड़े वीर और दूरदर्शी मुत्सद्दी थे। महाराजा सूरसिंहजी ने आपको बड़नगर (गुज. रात ) का सूबा बना कर भेजा था। इसके बाद जब सम्बत् १६०२ में फलौदी पर महाराजा सूरसिंहजी का अधिकार हुआ तब मुहणोत जयमलजी वहाँ के शासक बनाकर भेजे गये। महाराजा सूरसिंह जी के बाद महाराजा गजसिंहजी जोधपुर के सिंहासन पर बिराजे । सम्बत् १६७७ के बैसाख मास में गनसिंहजी को जालोर का परगना मिला। उस समय जयमलजी वहाँ के भी शासक बनाये गये। महा. राजा गजसिंहजीने आपको हवेली, बाग, नौहरा और दो खेत इनायत किये । जब सम्वत् १९७६ में शाहजादा कुर्रम ने महाराजा गजसिंहजी को सांचोर का परगना प्रदान किया, तब जयमलजी अन्य परगनों के साथ साथ सांचोर के शासक भी नियुक्त किये गये ।
सम्वत् १६४४ में जयमलजी ने बाड़मेर कायम कर सूराचन्द्र, पोहकरण, राऊदड़ा और मेवासा के बागी सरदारों से पेशकशी कर उन्हें दण्डित किया।
विक्रम सम्बत १६८९ में महाराजा गजसिंहजी के बड़े कुँवर अमरसिंहजी को नागोर मिला । इस वक्त जबमलजी नागोर के शासक बनाये गये।
जयमलजी की वीरता-हम ऊपर कह चुके हैं कि मुहणोत जयमलजी बड़े वीर पुरुष थे । सम्बत १६01 में जब महाराजा गजसिंहजी को सांचोर का परगना जागीर में मिला तब कोई ५००० कान्छी सांचोर पर चढ़ आये। उस समय जयमलजी वहाँ के हाकिम थे। इन्होंने काच्छियों के साथ वीरतापूर्वक युद्ध किया और उन्हें मार भगाया। इसी प्रकार आपने जालोर में बिहारियों से लड़ कर वहां के गद पर अधिकार कर लिया था। सम्बत १९८६ में आपको दीवानगी का प्रतिष्ठित पद प्राप्त हुआ।
जयमलजी के धार्मिक कार्य-जयमलजी मूर्तिपूजक जैनश्वेताम्बर पंथ के थे । मापने ई